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एस धम्मो सनंतनो
प्रश्नों में मत उलझो, व्यर्थ के बौद्धिक प्रश्नों में मत उलझो।
अगर ध्यान में रुचि है तो ध्यान में डूब जाओ, फिर प्रेम के संबंध में प्रश्न ही मत पूछो। समय कहां है! व्यर्थ क्यों समय गंवाते हो? कल का पक्का नहीं है। एक क्षण बाद का पक्का नहीं है। अगर प्रेम की बात जंचती है तो ध्यान की बात भूलो और प्रेम में डुबकी ले लो। समय नहीं है ज्यादा। लेकिन मैं अक्सर देखता हूं कि लोग इस तरह की बातों में बड़ा श्रम लगाते हैं।
अब जिन मित्र ने यह पूछा, वह निश्चित ही चिंतित हैं। चिंता जरा व्यर्थ मालूम होती है, लेकिन वह चिंतित हैं, इसमें कोई शक नहीं है। और प्रामाणिक उनकी परेशानी मालूम होती है। उनके चेहरे पर बड़े बल पड़ गए हैं। परशुराम को अवतार क्यों कहा जाता है ? मुझसे बात करने के बाद भी, मेरे समझाने के बाद भी, उन्होंने कहा कि अभी तो ज्यादा समय नहीं है आपके पास, फिर कभी आऊंगा। ___ मगर उनको अभी बात जंची नहीं है। यह बात नहीं जंची कि यह व्यर्थ है, इसे छोड़ें, इससे क्या लेना-देना! मतलब अभी वह सोच-विचार जारी रखेंगे। परशुराम न हुए रोग हो गए।
और परशुराम ने हिंसा की या नहीं की, तुम परशुराम को पकड़कर अपने जीवन के साथ जो हिंसा कर रहे हो, वह तुम्हारी समझ में नहीं आती। जिससे प्रयोजन न हो, उसके संबंध में विचार करने की भी जरूरत नहीं। इतना भी क्यों अपनी शक्ति, अपनी ऊर्जा को व्यय करो।
तो यदि तुम्हारे जीवन में प्रेम है, और तुम्हें लगता है कि प्रेम में तुम्हें सुविधा मिलेगी, सुगम मालूम होता है, उतरो। फिर तुम पाओगे कि प्रेम में जैसे-जैसे उतरे. परमात्मा में उतरे। एक दिन तुम पाओगे कि प्रेम की पराकाष्ठा ही परमात्मा है। न हो रस प्रेम में, तो इस तरह के प्रश्नों में मत उलझो। तुम ध्यान में उतरो। __ और दो के अतिरिक्त तीसरा कोई मार्ग नहीं है। इसलिए निर्णय करना बहुत कठिन नहीं है। अच्छा ही है कि दो ही मार्ग हैं। दो ही मार्ग के रहते भी तुम निर्णय नहीं कर पा रहे, अगर और बहुत ज्यादा मार्ग होते तो बड़ी अड़चन हो जाती, फिर तो निर्णय कभी न हो पाता। दोनों पर प्रयोग करके देख लो।
कभी-कभी ऐसा भी होता है कि अनिर्णय की स्थिति होती है। ऐसा भी लगता है कि प्रेम ठीक, ऐसा भी लगता है ध्यान ठीक। तो दोनों पर प्रयोग करके देख लो। एक वर्ष पूरा का पूरा भक्ति में डुबा दो। मिल गया तो ठीक, फिर दूसरे पर प्रयोग करने की जरूरत न रह जाएगी। लेकिन पूरा लगा दो। न मिला तो भी एक बात तय हो जाएगी कि यह मेरा मार्ग नहीं है। ___ अधूरे-अधूरे कुनकुने लोगों को बड़ी तकलीफ है। न तो कभी हृदयपूर्वक किया है, इसलिए तय ही नहीं हो पाता कि मेरा मार्ग है या नहीं है।
मैं तुमसे कहता हूं, जो भी तुम पूरे रूप से कर लोगे, उसमें से निर्णय बाहर आ
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