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________________ धर्म अनुभव है तुम सरलता से पिघल पाते हो, तुम्हारी आंखों से आंसुओं की धार बहने लगती है सुगमता से, तुम्हारा दिल डोलने लगता है, तुम नाचने लगते हो-तुम्हारा मनमयूर नाचने लगता, तुम्हारे भीतर एक छंद पैदा होता है, एक स्फुरणा होती है, रोआं-रोआं किसी रोमांच से पुलकित हो जाता है, अगर तुम्हारे भीतर प्रेम का भाव रोमांच लाता हो, तो पहचान लेना कि तुम्हारे लिए भक्ति ही द्वार है। अगर तुम्हें प्रेम का शब्द खाली निकल जाता हो, प्रेम के शब्द से कुछ न होता हो, न आंख में आंसू झलकते हों, न हृदय में कोई धड़कन होती हो, न रोमांच होता हो, अगर प्रेम का शब्द खाली-खाली निकल जाता हो, कोरा-कोरा, इस शब्द में कोई प्राण ही न मालूम पड़ते हों, तो तुम इस बात को छोड़ देना, फिर कोई जरूरत नहीं है। हमेशा खयाल रखना, जो मार्ग तुम्हारे लिए न हो, उस पर श्रम मत करना। क्योंकि वह सारा श्रम व्यर्थ जाएगा। जिद्द मत करना। ऐसा मत कहना कि मैंने तो चुन लिया, इसी पर अटका रहूंगा। मेरे पास बहुत से लोग आते हैं, वे कहते हैं, हम बहुत दिन से प्रार्थना कर रहे हैं, कुछ परिणाम नहीं हुआ। तो हमने कोई पाप किए हैं? हमने कोई पिछले जन्मों में बुरे कर्म किए हैं? जेब मैं देखता हूं गौर से, तो यह पाता हूं कि न तो कोई पाप किए हैं-क्या पाप करोगे तुम! पाप करने को है क्या बहुत! यह पाप करने की धारणा भी कर्ता का ही हिस्सा है। करने वाला तो परमात्मा है, तुम क्या पाप करोगे, क्या पुण्य करोगे! यह कर्म का जो हमारा सिद्धांत है, कि कर्म किए, यह भी कर्ता का ही हिस्सा है। यह अज्ञान का ही बोध है। न तो तुमने कुछ पाप किए, न पुण्य किए हैं। जो उसने करवाया है, करवाया है। जो हुआ है, हुआ है। फिर तुम क्यों अटके हो? अटके इसलिए हो कि तुम उस द्वार से प्रवेश करने की कोशिश कर रहे हो जो तुम्हारा द्वार नहीं है। प्रार्थना तो कर रहे हो वर्षों से, लेकिन प्रार्थना तुम्हारा द्वार नहीं है। फिर समझाने को तुम सोच लेते हो कि पाप किए होंगे, इसलिए बाधा पड़ रही है। नहीं कोई बाधा पड़ती। तुम ध्यान से तलाशो, अगर प्रार्थना से नहीं मिल रहा है तो। ____ कुछ लोग हैं जो ध्यान पर लगे हुए हैं, कुछ नहीं हो रहा है। उनको मैं कहता हूं, तुम प्रार्थना से तलाशो। मेरी नजर मार्ग पर नहीं है, मेरी नजर तुम पर है। मेरे लिए यह बात बहुत अर्थपूर्ण नहीं है कि तुम किस मार्ग से पहुंचते हो, मेरे लिए यही बात अर्थपूर्ण है कि तुम पहुंचते हो। पहुंच जाओ, किसी वाहन पर सवार होकर-घोड़े पर, कि हाथी पर, कि पैदल, कि बैलगाड़ी में-कैसे भी पहुंच जाओ। वाहन की बहुत चिंता मत करो, वाहन तुम्हारे लिए है, तुम वाहन के लिए नहीं हो। अब तक पृथ्वी पर मार्गों पर बहुत जोर दिया गया। तुम भक्त से पूछो तो वह भक्त की ही बात को कहेगा। वह कहेगा, सिर्फ भक्ति से ही पहुंच सकते हो। वह 173
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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