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जगत का अपरतम संबंध : गुरु-शिष्य के बीच
पहला प्रश्न:
- संतों की वाणी सुनने या पढ़ने से मन या मस्तिष्क का तनाव
दूर होता है। असंतों के कलाम की यह विशेषता नहीं होती। कृपया बताएं कि इसका कारण क्या है?
पछा है फारूख खां ने।
- पहली बात, संतों की वाणी सिर्फ वाणी नहीं है। वाणी ही हो तो खोल ही हैं, भीतर कुछ सार नहीं; शब्द ही हैं, भीतर कुछ सार नहीं। संतों की वाणी वाणी से कुछ ज्यादा है। वाणी तो केवल सहारा है उसे देने का, जो और किसी ढंग से दिया नहीं जा सकता। वाणी तो वाहन है। शब्दों पर चढ़ाकर, शब्दों के घोड़ों पर चढ़ाकर जो भेजा जा रहा है, वह शब्द से बहुत पार है। उसकी ही वर्षा जब हो जाती है हृदय पर तो शांति मिलेगी, सुख मिलेगा, संतोष मिलेगा। ___ असंतों की वाणी कोरी है, खाली है। जैसे मरा हुआ आदमी, लाश पड़ी है।
और यही आदमी जीवित था कल तक। शरीर अब भी वैसा ही है, लेकिन शरीर के भीतर से कोई चीज उड़ गयी। अब तो पिंजड़ा पड़ा रह गया है, पक्षी उड़ गया। असंतों की वाणी ऐसी है जैसे मरा हुआ आदमी। शब्द की देह तो है, लेकिन अनुभव की
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