________________
एस धम्मो सनंतनो
फिर फागुन महका रे यह तो बाहर के फागुन का गीत है
एक बरस के बाद आज फिर फागुन महका रे एक बरस के बाद आज
मन सुगना बहका रे यह तो बाहर की बात है, भीतर की बात तो ऐसी है कि-
बरस-बरस के बाद जन्म-जन्म के बाद आज मन सुगना बहका रे बरस-बरस के बाद जन्म-जन्म के बाद आज फिर फागुन महका रे
.
छंदजातो अनक्खातो...।
जिसको उस अव्याख्य में, निर्वाण में छंद आ गया, रस आ गया, जो मगन हो गया, मस्त हो गया, जो नाच उठा, जो गीत-गीत हो गया, जो भूल ही गया अहंकार को, बात ही गयी, मैं का भाव ही न रहा, वही नाचता हुआ चैतन्य, वही भीतर.की मदिरा से मस्त चैतन्य ऊर्ध्वस्रोता हो जाता है।
आज इतना ही।
90