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________________ सुख या दुख तुम्हारा ही निर्णय में पड़ गए। फिर तुम्हें लगेगा कि विषाद ही विषाद मिल रहा है। और मजा यह है कि तुम्हारा अहंकार इसमें भी रस लेने लगेगा। तुम कहोगे, मैं कोई साधारण आदमी नहीं हूं, मेरे जीवन में तो विषाद ही विषाद लिखा है। एक विषाद की लंबी कथा हूं। तुम इसके गीत गुनगुनाने लगोगे। तुम अपने दुख का भी श्रृंगार करोगे। तुम दुख का भी प्रदर्शन करने लगोगे। तुम दुख के कारण भी लोगों का ध्यान आकर्षित करोगे। तुम रोओगे, तुम चीखोगे - चिल्लाओगे, ताकि लोग तुम्हारे प्रति आकर्षित हों और कहें कि हां, तुम जैसा दुख किसी के पास नहीं देखा । तुम्हारा दुख बड़ा विशिष्ट है। तुम संताप, संत्रास से भरे हुए रहोगे । मैंने सुना है, एक कवि सम्मेलन में आधुनिक कवि इकट्ठे हुए थे। सब संताप से भरे, संत्रास से भरे, दुखी, विषाद से भरे; जैसे सभी बोझ ढो रहे हैं भारी, जैसे सारा संसार उनके ऊपर टूट पड़ा है— रिरियाते, रोते । कवि सम्मेलन के संयोजकों ने उनके चित्र उतारने की व्यवस्था की थी। फोटोग्राफर आया, उसने सबको बिठाया । और उसने कहा कि सुनिए, एक क्षण के लिए कृपा करके यह दुख, संताप, संत्रास चेहरे से जरा हटा लीजिए, फिर एक क्षण के बाद आप अपनी स्वाभाविक स्थिति में पुनः आ सकते हैं। कुछ लोगों ने इसको स्वाभाविक स्थिति बना रखी है। दुख लिखे फिरते हैं। चेहरे पर दुख के साइनबोर्ड लगा रखे हैं । इसमें जरूर उन्हें कुछ लाभ होता है। सहानुभूति मिलती है । लेकिन यह बड़ी सस्ती सहानुभूति हुई । कुछ और तरह से ध्यान आकर्षित करो। मुस्कुराकर आकर्षित करो। रोकर क्या आकर्षित किया! अगर लोगों की सहानुभूति चाहिए... प्रेम चाहो, सहानुभूति भी कोई मांगने की बात है ? इसे थोड़ा समझें । सहानुभूति रुग्ण है। प्रेम स्वस्थ है। जब तुम्हारे जीवन में प्रेम नहीं मिलता, तब तुम सहानुभूति मांगने लगते हो। तब तुम सहानुभूति को ही प्रेम समझ लेते हो। तुमने खोटे सिक्के को असली बना लिया। जब तुम अपने सौंदर्य के कारण लोगों को आकर्षित नहीं कर पाते, तो तुम अपनी कुरूपता के कारण ही लोगों का ध्यान आकर्षित करने लगते हो। ध्यान तो आकर्षित करना ही है । अगर तुम्हारे स्वास्थ्य में लोग सम्मिलित नहीं हो पाते, तो तुम बीमार पड़कर बीच रास्ते पर गिर जाते हो कि भीड़ तो इकट्ठी हो जाए। भीड़ इकट्ठी करने का मजा ऐसा है ! किसी कारण से हो जाए, लेकिन तुम चाहते हो लोगों की आंखें तुम्हें देखें, तुम्हें विशिष्ट मानें। कुछ भी करने को आदमी तैयार हो जाता है। 1 यहां मैं देखता हूं, हजार तरह के लोग आते हैं । उनमें मैंने देखा, जो साधारणतः स्वस्थ हैं, सुंदर हैं, स्वाभाविक हैं, वे भी ध्यान को आकर्षित करते हैं, लेकिन उनकी 83
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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