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________________ ऊर्जा का क्षण-क्षण उपयोग : धर्म आचरण पर ले आएगी। ___ इसलिए तुमसे जो कहता है, पाप छोड़ दो, वह व्यर्थ ही समय गंवा रहा है। अपना भी, तुम्हारा भी। तुमने पाप को कभी पकड़ा ही नहीं है। तुम तो पुण्य को ही पकड़ते हो। तुमसे जो कहता है, बुरा मत करो; तुम हंसोगे, तुम कहोगे, बुरा तो हम कभी करते ही नहीं। हो जाता है, यह दूसरी बात है! करते हम सदा भला हैं। करते तो हम भले की ही शुरुआत हैं, आखिरी में हाथ में बुरा लगता है, यह हमारा दुर्भाग्य है। इन सूत्रों में प्रवेश के पहले पहली बातं, जीवन की क्रांति बोध की क्रांति है, कृत्य की नहीं। क्योंकि बुनियादी भूल वहीं हो रही है। तुम्हारे जानने में भूल हो रही है। तुम्हारे होश में भूल हो रही है। दूसरी बात, पाप तुम्हें प्रलोभित करता है। क्यों? सदियों-सदियों से आदमी जानता रहा है, सभी आदमियों का अनुभव है, पर यह अपरिहार्य रूप से एक ही बात सिद्ध करता है कि पाप लोगों को गहन दुख में ले गया। हर बार निष्पत्ति दुख में होती है। तुमने हिंसा की, तुमने क्रोध किया, कब सुख पाया? तुमने लोभ किया, तुमने मत्सर बांधा, तुमने ईर्ष्या की, कब सुख की वर्षा हुई? एक आध भी तो अनुभव हो, जो तुम्हारे समर्थन में खड़ा हो जाए। सारे अनुभव तुम्हारे विपरीत हैं, फिर भी तुम अनुभव की नहीं सुनते। तो जरूर कहीं बड़ी गहरी चाल होगी। पाप सुख का प्रलोभन देता है। सुख कभी नहीं देता, प्रलोभन देता है। यह तो तुम भी जानते हो कि पाप से कभी सुख नहीं मिला, लेकिन प्रलोभन! वहीं तुम भूल जाते हो। अनुभव तो दुख है, लेकिन प्रलोभन का तो कोई अंत नहीं। प्रलोभन तो कोरा आश्वासन है। ___ पाप कहता है, इस बार नहीं हुआ, अगली बार होगा। पाप कहता है, आज नहीं हुआ, हजार चीजें विपरीत पड़ गयीं, कल होगा। लोगों ने न होने दिया, मैंने तो सब इंतजाम किया था, समय अनुकूल न पड़ा, भाग्य और विधि ने साथ न दिया, परिस्थिति प्रतिकूल हो गयी, हवाएं उलटी बहने लगीं, मैंने तो नाव छोड़ी थी ठीक समय, ठीक दिशा में, मेरा कोई कसूर नहीं, कल होगा। ठीक अवसर पर, ठीक मौसम में, समय-घड़ी, विधि-विधान चुनकर फिर से शुरू करना। पाप की कला यह है कि जब भी पाप हारता है, दोष दूसरों पर डालता है। और प्रलोभन को फिर-फिर बचा लेता है। तो जिस व्यक्ति के जीवन में दूसरों को दोष देने की आदत है, वह कभी पाप से मुक्त न हो पाएगा। क्योंकि वही तो पाप के बचाव की व्यवस्था है। पाप सदा ही इशारा कर देता है कहीं और, कि देखो, इस कारण अड़चन आ गयी। अगर यह अड़चन न होती, तो आज तुम विजेता हो गए होते। साम्राज्य तुम्हारा था। पाप दोषारोपण अपने पर नहीं लेता। और जिस व्यक्ति की यह आदत गहरी हो गयी हो कि दोष को दूसरे पर टाल दे, वह कभी पाप से मुक्त न हो पाएगा। होने का कोई 57
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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