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एस धम्मो सनंतनो
बालो पूरति पापस्स थोकथोकम्पि आचिनं ।।१०७।।
मावमजेथ पुचस्स न मन्तं आगमिस्सति। उदविन्दुनिपातेन उदकुम्भोपि पूरति। धीरो पूरति पुचस्स थोकथोकम्पि आचिनं ।।१०८।।
धम्मपद के आज के सूत्र पाप और पुण्य के संबंध में हैं।
पाप दुख लाता है, फिर भी लोग किए जाते हैं। पुण्य सुख लाता है, फिर भी लोग टाले जाते हैं। तो पाप और पुण्य की प्रक्रिया को समझना जरूरी है। जानते हुए भी कि पाप दुख लाता है, फिर भी मुक्त होना कठिन है। जानते हुए भी कि पुण्य सुख लाता है, फिर भी प्रवेश कठिन है। तो जरूर पाप और पुण्य की प्रक्रिया में कुछ उलझाव है, जहां मनुष्य खो जाता है, भ्रमित हो जाता है। ___ पहली बात, पाप को पाप जानकर कोई भी करता नहीं, कभी नहीं किया है। पाप को जो पाप की तरह जान लेता है, हाथ तत्क्षण रुक जाते हैं। पाप को व्यक्ति पुण्य की भांति जानकर ही करता है। तुम बुरा भी करते हो, तो भला मानकर करते हो। बुरा भले की ओट में छिपा होता है।
इसलिए तुम यह प्रतीक्षा मत करना कि तुम जान लोगे कि बुरा बुरा है, बुरा दुख लाता है, तो मुक्त हो जाओगे। तुम्हें अपने भले के दृष्टिकोण में छिपे बुरे को खोजना होगा। तुम्हें वहां तलाश करनी होगी, जहां तुमने तलाश की ही नहीं। तुम्हारा क्रोध तुम्हारी करुणा की ओट में छिपा है। तुम्हारी हिंसा तुम्हारी अहिंसा की आड़ में छिपी है। तुम्हारी कामवासना ने ब्रह्मचर्य के वस्त्र धारण कर लिए हैं। और तुम्हारा असत्य सत्य के शब्द सीख गया है। तुम्हारा अज्ञान पांडित्य की भाषा बोलता है।
शैतान को बचने को कोई जगह नहीं मिली, वह मंदिरों की प्रतिमाओं में छिप गया है। वहां तुम उसे देख ही नहीं पाते, क्योंकि वहां तुम भगवान को देखने जाते हो। वहां तुम एक पक्ष लेकर जाते हो। तुम्हारी आंखें पहले से ही भरी होती हैं। शैतान को बचने के लिए मंदिर और मस्जिद से बेहतर कोई जगह नहीं है। और अज्ञान को बचने के लिए शास्त्रों से बड़ा कोई सहारा नहीं है। और अहंकार को अगर अपने को सदा के लिए छुपा लेना हो सुरक्षित, तो विनम्रता, बस विनम्रता ही सुदृढ़ भीत है। उसी सुदृढ़ किले के भीतर अहंकार छिप जाता है। __पाप को पाप जानकर किसी ने कभी किया नहीं। पाप को कुछ और जानकर किया है। इसलिए पाप का असली सवाल कृत्य का नहीं है, बोध का है। तुम्हारे जानने में भूल हो रही है, तुम्हारे करने में नहीं। अगर जानना सुदृढ़ हो जाए, सुधर जाए, ठीक-ठीक हो जाए, करना रूपांतरित हो जाएगा। सम्यक दृष्टि तुम्हें सम्यक