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एस धम्मो सनंतनो
लेकिन सदा खयाल रखना कि जो गहराई भी तुम्हें मिले, उसे संसार में जाकर सम्हालना है। जो ध्यान तुम्हें लगे, उसे बाजार में सम्हालना है। किसी न किसी दिन तुम्हारी दुकान ही तुम्हारा मंदिर हो जाए, यह मेरी आकांक्षा है। अच्छा किया, रुक गए। उस क्षण भाग जाते तो बुरा होता।
जीना है तो पीकर जी पीना है तो जीकर पी पी की नजरें घोल के पी ले
जय साकी की बोल के पी ले मगर फिर जाओ। फिर जब वहां समय मिल जाए, वहां भी आंख बंद कर लेना और डुबकी लगा लेना। जब ऐसा लगे कि अनुभव थोड़ा हाथ से छूटने लगा, फिर आ जाना। फिर मुझमें स्नान कर लेना। लेकिन आखिरी खयाल में यही बात रहे कि । एक दिन ऐसी घड़ी लानी है कि तुम जहां हो वहीं डुबकी लगा सको, यहां आने की जरूरत न रह जाए। ठीक है थोड़े समय आना-जाना। मुझसे भी मुक्त हो जाना जरूरी है। बीमारी से मुक्त हुए, फिर औषधि से बंध गए-वह भी बुरा है। बीमारी से मुक्त हुए, फिर आहिस्ता-आहिस्ता औषधि की मात्रा कम करते जाना है, फिर उससे भी मुक्त हो जाना है।
तुम जिस दिन परम मुक्त हो, तुम जिस दिन तुम हो, बस उसी दिन काम पूरा हुआ। फिर उस दिन दूसरे तुम्हारे पास आकर तुममें डुबकी लगाने लगेंगे।
तो मैं तो एक श्रृंखला पैदा करना चाहता हूं। मेरी ज्योति से तुमने अपनी ज्योति जला ली, फिर ठीक है; कभी-कभी धीमी पड़ जाए, लौट आना। फिर उकसा लेना। फिर ताजा कर लेना। कभी जोश गिर जाए, उत्साह खो जाए, धुन दूर सुनायी पड़ने लगे, हाथ से धागे छूटते मालूम पड़ें, लौट आना। लेकिन धीरे-धीरे जब तुम्हारी ज्योति जलने लगे, तुम्हारे घर में उजेला हो, तो यहां आने की कोई जरूरत नहीं; दूसरे तुम्हारे पास आने लगेंगे, फिर उनकी ज्योति जलाना।
ज्योति से ज्योति जलाता चल! इसलिए किसी तरह का द्वंद्व खड़ा मत करो। मैं द्वंद्व खड़ा नहीं करना चाहता, विसर्जित करना चाहता हूं। यहां मोह मत बनाओ। मोह से तो द्वंद्व खड़ा होगा। फिर बच्चे वहां तड़फेंगे तो उनकी पीड़ा; फिर पत्नी दुखी होगी, उसकी पीड़ा; फिर परिवार है, मां है, पिता हैं, वृद्ध हैं, उनकी पीड़ा! नहीं, मुझे बुद्ध और महावीर का ढंग कभी जंचा नहीं। हजारों घर उदास हो गए थे। हजारों पत्नियां जीते जी, पति के जीते जी विधवा हो गयीं! हजारों बच्चे बाप के जीते जी अनाथ हो गए। मुझे वह ढंग कभी जंचा नहीं। उसमें मुझे कहीं भूल मालूम पड़ती रही है। ___ इसीलिए अगर बुद्ध और महावीर उखड़ गए और इस जीवन की गहराई में उनकी छाया न पड़ी-स्वाभाविक है। बात ही ऐसी थी कि पड़ नहीं सकती थी।
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