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एस धम्मो सनंतनो
होता है। तुम कहते हो, परमात्मा ने जन्म दिया। पर क्यों ? परमात्मा को भी क्या सूझी ? क्या अर्थ है ? न देता तो हर्ज क्या था ? प्रश्न मिटा नहीं, प्रश्न वहीं का वहीं है, एक कदम पीछे हट गया । परमात्मा क्यों है? क्या उत्तर दोगे ? तुम्हारे सब उत्तर वर्तुलाकार होंगे। तुम कहोगे, परमात्मा इसलिए है कि सृष्टि का पालन करे । और सृष्टि इसलिए है कि परमात्मा बनाए !
इन उत्तरों से तुम किसे धोखा दे रहे हो ? जैसे अंधेरी रात में, अंधेरी गली में आदमी गुनगुनाने लगता है गीत । गीत गुनगुनाने से कुछ भय मिटता नहीं, लेकिन अपनी ही आवाज सुनकर ऐसा लगता है, कोई साथ है। लोग सीटी बजाने लगते हैं। सीटी बजाने से किसी का साथ नहीं हो जाता। लेकिन अकेलेपन का भय दब जाता है।
मरघट से कभी गुजरे हो अंधेरी रात में ? नास्तिक भी मंत्र गुनगुनाने लगता है । · मंत्र भूत-प्रेतों से रक्षा नहीं करते। पहली तो बात भूत-प्रेत हैं नहीं, जिनसे रक्षा करनी हो । भूत-प्रेत तुम गढ़ते हो, फिर मंत्रों से रक्षा करते हो। पहले बीमारी खड़ी करते हो, फिर औषधि खोजते हो । फिर एक औषधि काम न करे तो दूसरी औषधि खोजते हो। यही तो दर्शनशास्त्र की सारी भ्रमणा है, विडंबना है ।
तुम सोचते हो, प्रश्न बन गया तो उत्तर होना ही चाहिए। आदमी प्रश्न बना लेता है, तो सोचता है, कहीं न कहीं उत्तर भी होगा, जब प्रश्न है तो उत्तर भी होगा। प्रश्न तो कोई भी बना सकते हो। तुम पूछ सकते हो, हरे रंग की गंध क्या है ? प्रश्न भूल-चूक नहीं है । भाषा ठीक है । कोई तर्कशास्त्री नहीं कह सकता कि प्रश्न में कुछ गलती है। हरे रंग की गंध क्या है ?
हरे रंग से गंध का क्या लेना-देना! मगर तुमने एक प्रश्न बना लिया, अब तुम उत्तर की तलाश पर चल पड़े। छोटे बच्चों को देखो। छोटे बच्चे जो प्रश्न पूछते हैं, वही बड़े-बूढ़े भी पूछते हैं। सिर्फ प्रश्नों का संयोजन बदल जाता है। छोटे बच्चे पूछते हैं, वृक्ष हरे क्यों हैं? क्या करोगे !
डी.एच. लारेन्स घूमता था बगीचे में - एक बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति। छोटा बच्चा साथ था, उसने पूछा कि मुझे यह बताओ, वृक्ष हरे क्यों हैं? डी. एच. लारेन्स ने उस बच्चे की तरफ देखा, वृक्षों की तरफ देखा, अपनी तरफ देखा, और बोला, हरे हैं, क्योंकि हरे हैं। वह बच्चा राजी हो गया । उत्तर मिल गया । पर यह कोई उत्तर हुआ ?
पहले तुम प्रश्न बनाकर सोचते हो, बन गया प्रश्न तो उत्तर होना चाहिए। फिर प्रश्न काटता है, बेचैन करता है। प्रश्न खुजली पैदा करता है। जब तक खुजला न लो, चैन नहीं मिलता । फिर कोई उत्तर चाहिए। तो कहीं न कहीं तुम किसी न किसी उत्तर पर राजी हो जाओगे ।
सभी लोग किन्हीं उत्तरों पर राजी हो गए हैं- कोई हिंदू, कोई मुसलमान, कोई ईसाई, कोई बौद्ध । इससे तुम यह मत समझना कि इन्हें उत्तर मिल गए हैं; इससे सिर्फ
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