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एस धम्मो सनंतनो
जाओगे तो अगले लोक में न बच सकोगे। अगर तुम पुलिस वाले की आंख से बच जाओगे तो परमात्मा की आंख से न बच सकोगे। ध्यान रखना, वह हमेशा देख रहा है, वह हर जगह देख रहा है। तुम जब अंधेरे में चोरी कर रहे हो, तब भी वह मौजूद है। वहां तो लिखा जा रहा है।
तो समाज ने अंतःकरण पैदा किया तुम्हारे भीतर, ताकि तुम अगर बच भी जाओ तो भी बिलकुल न बच जाओ; भीतर कोई कहता ही रहे कि कहीं पकड़े न जाओ, कहीं यह हो न, आज नहीं कल! और जब मौत करीब आने लगेगी, तब तुम घबड़ाने लगोगे कि अब आने लगा मरने का वक्त, अब सामने खड़ा होना होगा, और जिंदगीभर जो किया था अब उसका क्या हिसाब! हिसाब देना पड़ेगा। तो जो आदमी बच भी जाता है समाज से, वह भी अपनी आंखों से नहीं बच पाता। __ अपराध का मतलब है, करना तो तुम चाहते थे, बुरा भी तुम न मानते थे, लेकिन समाज ने तुम्हें मजबूर किया बुरा मानने को।
लज्जा बड़ी और बात है। लज्जा का मतलब है : सारा समाज भी कहता हो कि झूठ स्वीकार है, चोरी स्वीकार है, पाप स्वीकार है; फिर भी तुम अनुभव करते हो कि भूल है, गलत है। इसलिए नहीं कि कोई दंड देने वाला है; इसलिए नहीं कि कोई परमात्मा के सामने तुम्हें जवाबदार होना पड़ेगा; इसलिए भी नहीं कि कोई अपराध है; सिर्फ इसलिए कि तुम्हारे आत्मगौरव के अनुकूल नहीं, यह तुम्हारे होने के अनुकूल नहीं; यह तुम्हारी प्रतिष्ठा के प्रतिकूल है। यह किसी और के सामने तुम्हें नहीं गिरा रहा है, यह अपनी ही आंखों में गिराए जा रहा है। .
इसलिए लज्जा बड़ी और बात है। लज्जा बड़ा धार्मिक गुण है। अपराध ज्यादा से ज्यादा तुम्हें गैरकानूनी होने से रोकेगा; नैतिक बना देगा, लेकिन धार्मिक नहीं। लज्जा तुम्हें धार्मिक बनाएगी।
बुद्ध कहते हैं, लेकिन विरले हैं ऐसे पुरुष जिनके मन में न करने योग्य चीज को करने से लज्जा पैदा होती है। पर ऐसा ही सभी को होना चाहिए। _ 'जिस तरह उत्तम घोड़ा कोड़े को नहीं सह सकता।'
यह उसका अपमान है। तुम उत्तम घोड़े पर कोड़ा मत चलाना, उसकी जरूरत नहीं है। बुद्ध ने कहा है, घोड़े की आत्मा के सामने सिर्फ कोड़े की छाया काफी है। कोड़ा मत उठाना, कोड़े की छाया पर्याप्त है। उत्तम घोड़े को इशारा काफी है। तुम्हारे भीतर अगर थोड़ी भी लज्जा है, थोड़ी भी मनुष्य की महिमा का भाव है, थोड़ा भी आत्मगौरव है, अगर तुम्हें थोड़ा भी ऐसा लगता है कि यह जीवन एक महान अवसर है, एक महान संपदा है, एक प्रसाद है, इसे मैं क्षुद्रता में न गंवाऊं, तो बुद्ध कहते हैं, घोड़े की तरह, उत्तम घोड़े की तरह, तुम भी लज्जावान बनना।
सुना है मैंने, अकबर के जीवन में उल्लेख है कि चार वजीरों ने कुछ पाप किया। पकड़े गए। चारों को उसने बुलाया। पहले को उसने बुलाया और कहा कि ऐसा मैंने
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