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एस धम्मो सनंतनो
से क्या होगा? अनुमान करने से कुछ भी न होगा।
ईश्वर अनुमान नहीं है। तर्क ज्यादा से ज्यादा अनुमान है। ईश्वर अनुभव है। तुम अंधेरे में बैठे-बैठे अनुमान लगा रहे हो, सोच-विचार कर रहे हो, बड़ी चिंतना चला रहे हो, मगर तुम्हारी चिंतना से क्या होगा? तुम्हारे विचार से जल तो न मिलेगा, प्यास तो न बुझेगी! तुम कितने ही भवन बनाओ विचार के, सरोवर का कितना ही चिंतन करो, अनुमान करो-वर्षा न होगी। भूखे हो, भूखे रहोगे। सोचो खूब, छप्पन भोगों के संबंध में सोचो, थाल सजाओ कल्पना के...।
बढ़ाओ कल्पना के जाल, तब भी स्वप्न बाकी हैं
लगाओ तर्क के सोपान, तब भी प्रश्न बाकी हैं कुछ हल न होगा। अनुभव सुलझाता है। और अनुभव तभी हो सकता है जब भीतर के संदेह तुम हटाकर रख दो। संदेह अनुभव नहीं होने देता। इसीलिए तो इतने लोग मंदिरों-मस्जिदों में, गुरुद्वारों में प्रार्थना कर रहे हैं, और सब प्रार्थना न मालूम कहां खो जाती है। उस प्रार्थना से कहीं कोई जीवन की दीप्ति पैदा नहीं होती। उस प्रार्थना से कहीं ऐसा नहीं लगता कि प्राण निखरे, उज्ज्वल हुए। मंदिर से लौटता हुआ आदमी थका हुआ मालूम पड़ता है, कोई जीवन की ऊर्जा लेकर नाचता हुआ लौटता नहीं मालूम होता। प्रार्थना की ही नहीं, मंदिर हो आया है। झुका?
बेफायदा है सिज्दागुजारी सुबह-ओ-शाम
जब दिल ही झुक सका न सरे-बंदगी के साथ सिर झुकाते रहो, कवायद होगी, जो थोड़ा-बहुत लाभ हो सकता है व्यायाम से, जरूर होगा।
बेफायदा है सिज्दागुजारी सुबह-ओ-शाम
जब दिल ही झुक सका न सरे-बंदगी के साथ सिर झुके तब दिल भी झुके। दिल झुके तब सिर भी झुके। तुम पूरे-पूरे झुको, अधूरे-अधूरे नहीं। फिर तुम जहां झुक जाओ, वहीं मंदिर है। और तुम जिसके सामने झुक जाओ, वही परमात्मा है। तुम पत्थर के सामने झुको तो परमात्मा है। और अभी तुम परमात्मा के सामने भी झुको तो पत्थर है। क्योंकि परमात्मा तुम सृजन करते हो। वह तुम्हारे भावों से निर्मित होता है। वह तुम्हारी ऊंचाई है, तुम्हारी उड़ान है। तुम्ही जब जमीन पर सरक रहे हो, तो तुम्हारे सामने जो भी है वह पत्थर है। तुम जब उड़ोगे, तब तुम्हारे सामने जो भी होगा वह परमात्मा होगा।
बुद्ध श्रद्धा की बात नहीं करते, लेकिन मतलब वही है। फिर तुम उलटे-सीधे कुछ भी करते रहो। आदमी ने कितनी-कितनी चेष्टाएं नहीं की हैं! ___मैंने सुना है, एक बड़ी पुरानी चीनी कथा है। एक फकीर के पास, एक सिद्धपुरुष के पास तीन युवक आए। वे तीनों सत्य के खोजी थे और उन तीनों ने चरणों में सिर रखा और कहा कि हम सत्य के तलाशी हैं। हम बहुत दूर-दूर भटक आए हैं, अब
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