________________
एस धम्मो सनंतनो
जगा लेना अपने को! होशपूर्वक क्रोध करना। अगर कसम ही खानी है तो इसकी खाना कि होशपूर्वक क्रोध करेंगे। और तुम चकित हो जाओगे, अगर होश रखा तो क्रोध न होगा। अगर क्रोध होगा तो होश न रख सकोगे।
इसलिए असली दारोमदार होश की है। और तब एक और रहस्य तुम्हें समझ में आ जाएगा कि क्रोध, लोभ, मोह, काम, मद-मत्सर, बीमारियां तो हजार हैं, अगर तुम एक-एक बीमारी को कसम खाकर छोड़ते रहे तो अनंत जन्मों में भी छोड़ न पाओगे। एक-एक बीमारी अनंत जन्म ले लेगी और छूटना न हो पाएगा। बीमारियां तो बहुत हैं, तुम अकेले हो। अगर ऐसे एक-एक ताले को खोजने चले और एक-एक कुंजी को बनाने चले तो यह महल कभी तुम्हें उपलब्ध न हो पाएगा, इसमें बहुत द्वार हैं और बहुत ताले हैं। तुम्हें तो कोई ऐसी चाबी चाहिए जो चाबी एक हो और सभी तालों को खोल दे।
होश की चाबी ऐसी चाबी है। तुम चाहे काम पर लगाओ तो काम को खोल देती है; क्रोध पर लगाओ, क्रोध को खोल देती है; लोभ पर लगाओ, लोभ को खोल देती है; मोह पर लगाओ, मोह को खोल देती है। तालों की फिकर ही नहीं है-मास्टर की है। कोई भी ताला इसके सामने टिकता ही नहीं। वस्तुतः तो ताले में चाबी डल ही नहीं पाती, तुम चाबी पास लाओ और ताला खुला! __यह चमत्कारी सूत्र है। इससे महान कोई सूत्र नहीं। इससे तुम बचते हो और बाकी तुम सब तरकीबें करते हो, जो कोई भी काम में आने वाली नहीं हैं। तुम्हारी नाव में हजार छेद हैं। एक छेद बंद करते हो तब तक दूसरे छेदों से पानी भर रहा है। तुम क्रोध से जूझते हो, तब तक काम पैदा हो रहा है। ___ तुमने कभी खयाल किया? नहीं तो खयाल करना। अगर तुम क्रोध को दबाओ तो काम बढ़ेगा। अगर तुम कामवासना में उतर जाओ, क्रोध कम हो जाएगा। इसलिए तो तुम्हारे साधु-संन्यासी क्रोधी हो जाते हैं। तुम्हारे ऋषि-मुनि, दुर्वासा, इनका मनोविश्लेषण किसी ने किया नहीं, होना चाहिए। कोई फ्रायड इनके पीछे पड़ना चाहिए। दुर्वासा! इतने क्रोधी! इतना महान क्रोध आया कहां से? जरा-सी बात पर जन्म-जन्म खराब कर दें किसी का! ऋषि से तो आशीर्वाद की वर्षा होनी चाहिए। अभिशाप! जरूर कामवासना को दबा लिया है। ब्रह्मचर्य के धारक रहे होंगे। ब्रह्मचर्य को थोप लिया होगा। तब ऊर्जा एक तरफ से इकट्ठी हो गयी, कहां से निकले? वही ऊर्जा क्रोध बन रही है। उसी की भाप बाहर आ रही है। उसी का उत्ताप बाहर आ रहा है। __ तुम गौर से देखो। अगर तुम कामी आदमी को देखोगे तो उसको तुम क्रोधी न पाओगे। अगर संयमी को देखोगे, क्रोधी पाओगे। घर में एक आदमी संयमी हो जाए, उपद्रव हो जाता है, उसका क्रोध जलने लगता है। धार्मिक आदमी क्रोधी होता ही है। यह बड़े आश्चर्य की बात है! होना नहीं चाहिए, पर ऐसा होता है। क्यों ऐसा
220