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अशांति की समझ ही शांति
एक वृद्ध, पर बड़े महत्वपूर्ण व्यक्ति ने और बड़े कीमती व्यक्ति ने मुझसे कहा- उनके घर मैं मेहमान था कि मैंने अपने जीवन में...वे आचार्य तुलसी के अनुयायी हैं, तेरापंथी जैन हैं। और आचार्य तुलसी का यही धंधा है, लोगों को अणुव्रत नियम लो, कसम खाओ, छोड़ो...। तो मैंने उनसे पूछा कि तुमने क्या छोड़ा? तुम उनके खास अनुयायी हो। उन्होंने कहा, अब आपसे क्या छिपाचा! चार दफे ब्रह्मचर्य का व्रत ले चुका हूं।
चार दफा ! ब्रह्मचर्य का व्रत तो एक दफा काफी है, फिर दुबारा क्या लेने की जरूरत पड़ी? फिर मैंने कहा, पांचवीं दफे क्यों न लिया? वे कहने लगे, थक गया, चार दफा लेकर बार-बार टूट गया। तो इतनी बात तो समझ में आ गयी कि यह अपने से न होगा; इसलिए पांचवीं दफे नहीं लिया।
चार दफे ब्रह्मचर्य के व्रत का कुल इतना परिणाम हुआ कि यह आदमी आत्मग्लानि से भर गया। अब इसको अपने पर भरोसा न रहा कि मैं व्रत पूरा कर सकता हूं। यह आदमी पुण्यात्मा तो न बना, इसने पाप की शक्ति को स्वीकार कर लिया। यह तो घात हो गया।
इसलिए मैं व्रतों के विरोध में हूं। मैं कहता हूं, व्रत भूलकर मत लेना। अगर समझ आ गयी हो तो बिना व्रत के समझ को ही उपयोग में लाना। अगर समझ न आयी हो तो व्रत क्या करेगा? आज व्रत ले लोगे जोश-खरोश में, कल जब फिर पुरानी धारा पकड़ेगी तो व्रत टूटेगा। तो या तो फिर तुम छिपाओगे लोगों से कि व्रत टूटा नहीं, चल रहा है...कम से कम यह बूढ़ा आदमी ईमानदार था। इसने कहा कि मैं चार दफे ले चुका; पांचवीं दफे नहीं लिया, क्योंकि समझ गया कि यह अपने से नहीं हो सकता, असंभव है। ____ जरा सोचो, जब तुम्हें ऐसा लगता है कि असंभव है, तुम कितने पतित हो गए। तुम अपनी आंखों में गिर गए। तुमने आत्मगौरव खो दिया। इसलिए तथाकथित धार्मिक गुरु तुम्हारी आत्मा को नष्ट करते हैं, निर्माण नहीं करते। और तुम्हारे व्रत
और नियम तुम्हें मारते हैं, तुम्हें जगाते नहीं। अगर तुमने जबर्दस्ती की तो तुम पाखंडी हो जाओगे, भीतर-भीतर रस चलता रहेगा, बाहर-बाहर व्रत। अगर तुमने जबर्दस्ती न की तो व्रत टेगा, आत्मग्लानि से भर जाओगे, अपराध पैदा होगा। ___मैं तुमसे कहता हूं, पश्चात्ताप मत करना। क्रोध हो जाए तो अब इतना ही खयाल रखना : इस बार हुआ, अगली बार जब होगा तो होश से करेंगे। मैं तुमसे नहीं कहता कि अगली बार मत करना। मैं तुमसे कहता हूं, होश से करना।।
यही बुद्ध कह रहे हैं। वे कहते हैं, जब तुम कर्म करो तब होश से करना। पहले झकझोरकर जगा लेना अपने को। जब क्रोध की घड़ी आए तो बड़ी महत्वपूर्ण घड़ी आ रही है, मूर्छा का क्षण आ रहा है-तुम झकझोरकर जगा लेना अपने को! घर में आग लगने की घड़ी आ रही है, जहर पीने का वक्त आ रहा है— झकझोरकर
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