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एस धम्मो सनंतनो
निश्चित ही, यही मेरी देशना है कि अगर भगवान को जीना हो, तो अभी । न ना हो तो साफ कहो कि हम जीना ही नहीं चाहते, कल पर क्यों टालते हो ? कम से कम ईमानदार तो रहो। इतना ही कहो कि हमें लेना-देना नहीं। हमें प्रसन्न नहीं होना, हमें आनंदित नहीं होना । हमें दुखी रहना है। होश से दुखी रहो, कम से कम सच्चे तो रहोगे। और जो होश से दुखी है, ज्यादा दिन दुखी नहीं रह सकता। आज नहीं कल पहचानेगा कि मैं यह क्या कर रहा हूं? एक महा अवसर मिला था, गंवाए दे रहा हूं। जहां कमल के फूल ही फूल खिल सकते थे, वहां कांटे ही कांटे बनाए ले रहा हूं।
नहीं, तुम्हारी तरकीब यह है कि तुम कहते हो, होना तो है प्रसन्न, लेकिन कल । कल के बहाने आज तुम दुखी हो लोगे। तुम कहोगे, आज तो कैसे 'खुश हो सकते हैं, कल होंगे। आज तो दुख में हैं, सो बिता लेंगे किसी तरह, गुजार लेंगे किसी तरह। लेकिन आज के ही गुजरने से तो कल निकलेगा। अगर आज दुख में गया, तो कल सुखी नहीं हो सकता। इसी दुख से तो आएगा। इसी दुख पर तो बुनियाद पड़ेगी। इसी दुख पर तो कल का मंदिर खड़ा होगा। यही ईंटें तो कल के मंदिर को बनाएंगी, जिनको तुम आज का क्षण कहकर गंवा रहे हो ।
इसलिए मैं तुमसे कहता हूं, आज ही मंदिर बना लो। मंदिर बना ही है, तुम आज ही प्रार्थना कर लो। कल को कल पर छोड़ो ।
जीसस का बहुत प्रसिद्ध वचन है : कल कल की चिंता स्वयं कर लेगा । तुम आज जी लो।
धार्मिक व्यक्ति मैं उसी को कहता हूं, जिसने वर्तमान में जीने को ही एकमात्र जीवन बना लिया। फिर उसे परमात्मा को खोजने नहीं जाना पड़ता ।
सूफी फकीर अलहिल्लाज मंसूर ने कहा है कि इसमें भी क्या लुत्फ कि हम परमात्मा को खोजने जाएं। ऐसे भी ढंग हैं कि वह खोजता हुआ आता है।
मैं तुम्हें ऐसा ही ढंग दे रहा हूं कि वह तुम्हें खोजता हुआ आए। यह भी कोई मजे की बात है कि तुम खोजते फिरो उसे ! खोजोगे भी कहां, उसका कोई पता ठिकाना भी तो नहीं। तुम अगर उत्सव में जीओ, तो वह तुम्हें खोज लेगा । वह उत्सव का संगी-साथी है। वह उत्सव को प्रेम करता है । इसीलिए तो इतने फूल हैं, इतने गीत हैं, इतने चांद-तारे हैं। वह उत्सव का दीवाना है । तुमने उत्सव मनाया कि तुमने पाती लिख दी। तुमने उत्सव मनाया कि तुम्हारी खबर पहुंच गयी। तुम नाचो, नाच की ही गहराई में तुम अचानक पाओगे उसके हाथ तुम्हारे हाथ में आ गए, वह तुम्हारे साथ नाच रहा है। पर नाच में ही पाया जा सकता है। ऐसी उदास, मुर्दा शकलें बनाकर लोग बैठे हैं। परमात्मा भी झिझकता है ।
उसके साथ होने का एक ही ढंग है कि तुम नाचो । नाच की ही एक गति, एक भाव-भंगिमा है, जहां तुम तिरोहित हो जाते हो और वह नाचने लगता है। नाच की