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आज बनकर जी!
न हमें अपना पता है, न दूसरे का पता है। हमारे उपद्रव में, हमारे खेल में, हमारे पागलपन में, जो भी सहयोगी हो जाता है, उसको हम अपना कहने लगते हैं। जो विरोध में हो जाता है, उसको हम दुश्मन कहने लगते हैं। लेकिन न हमें ठीक पता है कि हम क्या पाने को चले हैं, न हमें ठीक पता है कि हम कौन हैं। ___यह पता हो भी नहीं सकता जब तक कि व्यक्ति टूटे हुए कांसे के बर्तन जैसा न हो जाए। जहां कोई विचारों की तरंगें न उठे, वहीं आत्म-साक्षात्कार है। ___और बुद्ध कहते हैं, निःशब्द हो गया जो, पा लिया निर्वाण उसने। फिर उसके लिए कोई प्रतिवाद न रहा। और जिसके भीतर मौन हो गया, कठोर वचन की तो बात अलग, उसके भीतर कोई प्रतिवाद भी नहीं है। कोई गाली भी दे, तो उसके भीतर प्रत्युत्तर भी नहीं है।
यहां बुद्ध ने बड़ी ऊंचाई छुई है। जीसस कहते हैं, जो तुम्हें चांटा मारे, तुम दूसरा गाल उसके सामने कर दो। अगर तुम बुद्ध से पूछोगे, बुद्ध कहेंगे, यह तो प्रतिवाद हुआ। तुमने कुछ किया। माना कि तुमने गाली के उत्तर में गाली न दी, उसने सिर तोड़ना चाहा था तो तुमने सिर न तोड़ा। तुम मूसा के नियम से ऊपर उठे। मूसा का नियम था: जो ईंट मारे, उसे तुम पत्थर से मारो। और जो तुम्हारी एक आंख फोड़ दे, तुम उसकी दोनों फोड़ दो। तुम मूसा के नियम से ऊपर उठे। किसी ने तुम्हें चांटा मारा, तुमने-एक गाल पर मारा था- दूसरा सामने कर दिया। लेकिन तुमने कुछ अभी भी किया, प्रतिवाद जारी रहा।
बुद्ध कहते हैं, निर्वाण की अंतिम दशा में प्रतिवाद ही नहीं। उसने चांटा मारा, जैसे नहीं ही मारा। जैसे तुम्हें कुछ भी न हुआ। हवा आयी और गयी। तुमने कोई भी प्रतिक्रिया न की।
यह भी प्रतिक्रिया है, साधु-प्रतिक्रिया है। किसी की असाधु-प्रतिक्रिया है : चांटा मारा, वह लट्ठ लेकर खड़ा हो गया। तुम्हें चांटा मारा, तुमने दूसरा गाल सामने कर दिया। लेकिन यह प्रतिक्रिया है। और प्रतिक्रिया अगर है, तो कितनी देर तक तुम गाल किए जाओगे?
मैंने सुना है, एक ईसाई फकीर ने किसी ने उसे मारा तो उसने दूसरा गाल कर दिया, क्योंकि जीसस की शिक्षा का अनुयायी था। लेकिन वह आदमी भी जिद्दी था, उसने दूसरे गाल पर भी चांटा मारा। यह इसने न सोचा था। क्योंकि इस शिक्षा में साधारणतया यह मान लिया गया है कि जब तुम दूसरा गाल करोगे, तो दूसरा झुककर चरण छुएगा और कहेगाः साधु-पुरुष हैं आप, मुझसे बड़ी भूल हो गयी। मगर वह आदमी जिद्दी था, उसने दूसरे गाल पर भी चांटा मारा।
अब जरा फकीर मुश्किल में पड़ा कि अब क्या करना। क्योंकि अब कोई गाल भी न बचा बताने को। एक क्षण तो उसने सोचा, फिर झपट्टा मारकर उस पर चढ़ बैठा। तो उस आदमी ने कहा, अरे-अरे! वह भी थोड़ा चौंका। उसने कहा,
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