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________________ एस धम्मो सनंतनो लिए मत करना। यह स्वर्ण-नियम है। समस्त वेद, समस्त कुरान और बाइबिल और धम्मपद इस एक नियम में निचोड़कर रखे जा सकते हैं। ___ जीसस से किसी ने पूछा है, हम क्या करें? जिसने पूछा है वह जल्दी में था। और जिसने पूछा था वह बहुत साधारण आदमी था। उसने कहा, मैं बहुत बुद्धिमान नहीं, शास्त्र का मुझे अनुभव नहीं, बहुत जटिल, उलझी बात मुझे मत कहना। सीधा-सीधा कह दो। और पूरा-पूरा कह दो। ताकि फिर पूछने की कोई जरूरत न रह जाए। तो जीसस ने कहा, तुम जो अपने लिए चाहते हो, वही दूसरों के लिए करना-बस सारा धर्म इतना ही है। ___आज के सारे सूत्र, इसी बुनियादी सूत्र की ही बुद्ध के द्वारा की गयी प्रतिध्वनियां हैं। एक बात और। तुम्हें बहुत अड़चन भी होती होगी, क्योंकि अभिव्यक्तियां बड़ी. भिन्न-भिन्न हैं। अभी हम, अभी-अभी हम नारद के सूत्र पढ़ते थे। प्रेम की उनमें गहन चर्चा थी। प्रीतम की तरफ इशारे थे। उस प्यारे का गुणगान था। फिर अब हम बुद्ध की चर्चा कर रहे हैं, एक दूसरी ही भूमि पर यात्रा शुरू होती है। कहीं कोई प्रेम की चर्चा नहीं है। कहीं कोई उस प्यारे का गुणगान नहीं है। भक्ति को तो तुम खोजकर भी न खोज पाओगे। यहां कुछ सूत्र दूसरे हैं। लेकिन फिर भी मैं तुमसे कहता हूं, सूत्र वही हैं। यह बुद्ध का ढंग है। बुद्ध भक्ति की बात न करेंगे। बुद्ध भगवान की बात न करेंगे। बुद्ध प्रेम की बात न करेंगे लेकिन प्रेम की ही बात करेंगे। दूसरी बात कर कैसे सकते हैं! उपाय कहां? ___ मैं मुल्ला नसरुद्दीन के घर बैठा था। उसके बेटे ने आकर कहा कि पापा, आपने कुत्ते के ऊपर जो निबंध लिखवाया था, मास्टरजी ने कहा है कि यही निबंध बड़े भैया ने भी पिछले वर्ष लिखा था-हूबहू यही। इसमें विराम, पूर्ण विराम का भी फर्क नहीं है। यह बिलकुल नकल है। मुल्ला थोड़ी देर सोचता रहा और उसने कहा कि जाकर अपने मास्टरजी को कहना, नकल नहीं है यह, मजबूरी है। कुत्ता वही है, निबंध दूसरा लिखें कैसे? मैं तुमसे कहता हूं, जिस दिन तुम्हारे पास आंखें होंगी, उस दिन तुम बुद्ध और महावीर, नारद, कृष्ण, क्राइस्ट, मोहम्मद के वचनों में विराम और पूर्ण विराम का भी फर्क न पा सकोगे। कुत्ता वही है। सत्य वही है, जिसकी बात हो रही है। अगर फर्क तुम्हें दिखायी पड़ते हैं, तो समझ की कमी के कारण दिखायी पड़ते हैं। और अगर फर्क हैं, तो बड़े ऊपरी हैं, ___ बुद्ध के कहने का ढंग अपना है—होना भी चाहिए। लेकिन जिस तरफ इशारा है, वह इशारा एक की ही तरफ है। मेरा तीर मेरे रंग का है, तुम्हारा तीर तुम्हारे रंग का है, लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है ? निशाना, तीर के रंग से निशाने का क्या लेना-देना? मेरा तीर सोने का होगा, तुम्हारे तीर पर हीरे-जवाहरात लगे होंगे, किसी 164
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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