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एस धम्मो सनंतनो
करोम् बढ़ा दो मय-ओ-मीना-ओ- अयाग
अब हटाओ ये प्यालियां, यह शराब, यह बेहोशी ! अपने बेख्वाब किवाड़ों को मुकफ्फल कर लो और अब बंद करो ये दरवाजे !
अब यहां कोई नहीं आएगा
ऐसा ही नहीं है कि अब यहां कोई नहीं आएगा, यहां कोई कभी नहीं आया। आना तुम्हारी कामना है। आए कोई ऐसी तुम्हारी वासना है। सत्य में न कभी कोई आता, न जाता । सत्य है। गाड इज । सत्य है। आना-जाना कुछ भी नहीं है।
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अनाश्रव चित्त की दशा का अर्थ होता है, तुम भी सिर्फ हो । न किसी की प्रतीक्षा है, न कुछ मांग है, + कोई प्रार्थना है, बस हो । उस होने की दशा में न भीतर कुछ आता, न बाहर कुछ जाता। सब ठहर गया । सब गति अवरुद्ध हुई । सब कंपन विदा हुआ । निष्कंप हुए।
अनाश्रव बौद्धों और जैनों का शब्द है। ठीक वैसे ही जैसे कृष्ण का शब्द है, स्थितप्रज्ञ। अनाश्रव का वही अर्थ है, जो स्थितप्रज्ञ का । ठहर गयी प्रज्ञा । अब कुछ भी आता-जाता नहीं । शाश्वत हुआ समय । अब क्षण की झंकार बंद हुई, अब स्वर खो गए, शून्य निर्मित हुआ ।
तुम थोड़ा प्रयोग करो । घड़ीभर को ही सही, क्षणभर को ही सही । अगर क्षणभर को भी तुमने अनाश्रव का अनुभव किया, तुम महा आनंद से भर जाओगे। तुम जिसे खोज रहे हो, वह दूर नहीं, वह तुम्हारे भीतर है। तुम जिसकी मांग कर रहे हो, वह मांगने से न मिलेगा, वह मिला ही हुआ है । बुझाओ दीए, द्वार - दरवाजे बंद करो । डूबो ध्यान में। पहले क्षणभर को कभी-कभी झलक मिलेगी अनाश्रव की— सब ठहरा हुआ; कोई कंपन नहीं । फिर धीरे - धीरे झलक गहरी होगी ।
क्षणभर की झलक का नाम ध्यान है । और जब झलक गहरी हो जाती, स्थाई हो जाती, तुम्हारा स्वभाव हो जाती, तब उसका नाम समाधि है।
आज इतना ही।
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