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एस धम्मो सनंतनो
जिसने यह कहा कि मैंने ही दुख कमाए, मैंने ही दुख दिए, अब उनके भोगने के लिए मैं पूरी तरह तैयार हूं। उसी घड़ी एक क्रांति घटित होती है। समय नया रूप लेता है। लंबाई हट जाती है, गहराई बढ़ती है। उस स्वीकार-भाव में ही दुख का तीर प्राणों तक छिद जाता है। एक क्षण में भी सारे जन्मों के पापों से छुटकारा है।
लेकिन तुमसे मैं कहूंगा, इसकी तुम आकांक्षा मत करो। नहीं तो तुम न्याय के विपरीत जा रहे हो, तुम नियम के विपरीत जा रहे हो।
और भी आसान होंगी राह की दुश्वारियां
हर अमीरे-कारवां को राहजन होने भी दे जिसने एक बार ठीक से समझ लिया कि मैंने जन्मों-जन्मों तक दुख बोए हैं, अब वह कहेगा कि जितने दुख मुझ पर आएं, उतना भला। अगर यात्री-दल के नेता लुटेरे हो जाएं और मुझे सब तरह लूट लें, तो और भी भला।
और भी आसान होंगी राह की दुश्वारियां राह की कठिनाइयां कम हो जाएंगी।
__ हर अमीरे-कारवां को राहजन होने भी दे
अगर यात्री-दल का नेता लुटेरा हो जाए, तो और भी अच्छा। अगर यह सारा संसार तुम्हें लूट ही ले, तो और भी अच्छा। उतने ही तुम हल्के हो जाओगे।
यह मुद्दत हस्ती की आखिर यूं भी तो गुजर ही जाएगी
दो दिन के लिए मैं किससे कहं आसान मेरी मुश्किल कर दे प्रार्थना मत करना। क्योंकि प्रार्थना में तुम बेईमान आकांक्षा कर रहे हो। तुम यह कह रहे हो कि दुख तो मैंने बनाए, तू क्षमा कर दे। करते वक्त तुमने उसे बुलाया न, भोगते वक्त बुलाते हो! करते वक्त वह अपने तई से भी आए, तो तुमने सुना न। भोगते वक्त तुम चिल्लाते हो!
दो दिन के लिए मैं किससे कहूं आसान मेरी मुश्किल कर दे ठीक है, ये दो दिन भी गुजर ही जाएंगे। जैसे और दिन गुजर गए, ये दिन भी गुजर जाएंगे।
राह में बैठा हूं मैं तुम संगे-रह समझो मुझे
आदमी बन जाऊंगा कुछ ठोकरें खा जाने के बाद जैसे राह पर पड़ा एक पत्थर हूं मैं।
राह में बैठा हूं मैं तुम संगे-रह समझो मुझे
आदमी बन जाऊंगा कुछ ठोकरें खा जाने के बाद मारो ठोकरें, चिंता न करो। ये ठोकरें ही मुझे जगाएंगी।
दुख जगाता है। दुख निखारता है। दुख सतेज करता है। और अगर तुम्हारा दुख तुम्हें अभी तक सतेज नहीं कर पाया, तो तुमने दुख को दुख की तरह देखा ही नहीं, पहचाना नहीं। तुम अभी भी दुख को अफीम की तरह लिए जा रहे हो। तुम उससे
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