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एस धम्मो सनंतनो
दो दुखों के बीच में खालीपन का पता है। खालीपन पर राजी होओ। कठिन है बहुत। मैं कल एक गीत पढ़ रहा था
अब कभी शाम बुझेगी न अंधेरा होगा अब कभी रात ढलेगी न सवेरा होगा आस्मां आस लिए है कि यह जादू टूटे चुप की जंजीर कटे, वक्त का दामन छूटे दे कोई शंख दुहाई, कोई पायल बोले
कोई बुत जागे, कोई सांवली घूघट खोले एक ऐसी घड़ी आ जाती है खामोशी की, जब ऐसा डर लगने लगता है कि अब क्या होगा? ध्यान में न उतरने का कारण यही है कि ऐसा लगता है कि अब कहीं यह चुप्पी न टूटी तो क्या होगा? अब यह रात कैसे कटेगी? अब सुबह कैसे होगी? क्योंकि खामोशी में और शून्य में और रिक्तता में सब ठहर जाता है, समय रुक जाता है, घड़ी बंद हो जाती है।
अब कभी शाम बुझेगी न अंधेरा होगा अब कभी रात ढलेगी न सवेरा होगा
आस्मां आस लिए है कि यह जादू टूटे और घबड़ाहट होने लगती है कि यह क्या हुआ? यह कैसा तिलिस्म? यह कैसा जादू ? यह किसने रोक दी सब सांसें?
आस्मां आस लिए है कि यह जादू टूटे
चुप की जंजीर कटे... मौन भी जंजीर की तरह मालम होता है कि कोई काट दे।
चुप की जंजीर कटे, वक्त का दामन छूटे और किसी तरह समय फिर से चल पड़े।
दे कोई शंख दुहाई... कुछ भी हो।
दे कोई शंख दुहाई, कोई पायल बोले
कोई बुत जागे, कोई सांवली धूंघट खोले कुछ भी हो जाए, लेकिन कुछ हो। मनुष्य के जीवन में पाप और दुख की इतनी गहनता इसलिए है कि तुम खाली होने को जरा भी राजी नहीं। और जो खाली होने को राजी नहीं, वह कभी ध्यान को न पा सकेगा। और जिसने ध्यान न पाया, उसके जीवन में पुण्य की कोई संभावना नहीं। और जिसने पुण्य को ही न पाया, अनाश्रव तो बहुत दूर है! जो स्वर्ग को भी न पा सका, वह निर्वाण को कैसे पा सकेगा!
दौड़ते रहते हैं हम जिंदगी में, पुनरुक्ति की भांति। पुरानी कथा वही-वही दोहरती रहती है। कुछ बातें खयाल में लेना।
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