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________________ एस धम्मो सनंतनो मरते वक्त इतनी आसानी से खड़ा नहीं हुआ है, तो इस नास्तिक के सामने खड़ा रहा होगा! नहीं, इसके भीतर दबा हुआ भाव। जिंदगीभर लड़ता रहा भीतर की किसी आकांक्षा से। जिससे तुम लड़ते हो, उसे तुम प्रबल करते हो। तुमने अगर धर्मगुरु से पाप के संबंध में बातें सुनीं, तुम्हारा पाप प्रबल होता चला जाएगा। धर्मगुरु ने पृथ्वी को पापों से मुक्त नहीं किया, पापों से भर दिया है। ___ यह बात तुम्हें जरा उलटी मालूम पड़ेगी। यह दुनिया कम पापी हो, अगर मंदिर और मस्जिद यहां से उठ जाएं। यह दुनिया कम पापी हो, अगर पंडित और पुरोहित पाप की निंदा न करें। क्योंकि निंदा से दमन होता है। दमन से रस बढ़ता है। जिस चीज के लिए भी तुमसे कह दिया मत करो, उसके करने के लिए एक गहरी आकांक्षा पैदा हो जाती है। लगता है, जरूर करने में कुछ होगा, अन्यथा कौन कहता है मत करो! जरूर करने में कुछ होगा। जब सारी दुनिया कहती है मत करो, सभी मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे कहते हैं मत करो, सभी पंडित-पुरोहित कहते हैं मत करो, जब इतने लोग कहते हैं मत करो, तो करने में जरूर कोई बात होगी, कोई रस होगा। अन्यथा कौन चिंता करता था! बुद्धपुरुष जब कहते हैं, पाप अग्नि है, जहर है, तो वे सिर्फ केवल तथ्य की उदघोषणा कर रहे हैं। उनके वक्तव्य में कोई विरोध नहीं है, कोई निंदा नहीं है। जैसे अगर मैं तुमसे कहूं आग जलाती है, तो मैं सिर्फ तथ्य की सूचना दे रहा हूं। तुम्हें जलना हो, हाथ डाल लेना। तुम्हें न जलना हो, मत डालना। मैं तुमसे यह नहीं कहता कि मत डालो। हाथ मत डालो, यह मैं तुमसे नहीं कहता। मैं तुमसे कहता हूं, यह आग जलाती है। अब तुम्हारे ऊपर निर्भर है, तुम्हें हाथ जलाना हो तो आग में हाथ डाल लेना, न जलाना हो मत डालना। बुद्धपुरुष केवल तथ्य की उदघोषणा करते हैं। उनकी उदघोषणा में कोई भावावेश नहीं है। तो जब बुद्ध इन वचनों को कह रहे हैं, तो यह खयाल रखना। तुम यह मत सोच लेना कि वे तुमको डरवाने के लिए कह रहे हैं कि पाप अग्नि है। डराकर कहीं कोई मुक्त हुआ है! भय से कहीं कोई पुण्य को उपलब्ध हुआ है! भय से कभी कोई भगवान को पहुंचा! न वे निंदा कर रहे हैं, पाप के विरोध में भी नहीं हैं। विरोध में होने योग्य भी क्या है पाप में! वे सिर्फ इतना कह रहे हैं, यहां गड्डा है। अगर सम्हलकर न चले, गिरोगे। अगर गिरना हो तो गैर-सम्हलकर चलना। अगर न गिरना हो, सम्हलकर चलना। उनकी तरफ से कोई आदेश नहीं है। जैन शास्त्रों में एक बड़ी मधुर बात है। जैन शास्त्र कहते हैं, तीर्थंकर के वचनों में उपदेश होता है, आदेश नहीं। यह बात बड़ी प्रीतिकर है। उपदेश का मतलब होता है, वे केवल कह देते हैं, ऐसा है। आदेश नहीं कि ऐसा करो। धर्मगुरु के वचन में आदेश होता है, तीर्थंकर 112
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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