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________________ जीवन-मृत्यु से पार है अमृत मैंने सुना है...चर्चिल ने दूसरे महायुद्ध के संस्मरण लिखे हैं-हजारों पृष्ठों में, छह भागों में किसी युद्ध के इतने विस्तीर्ण संस्मरण लिखे नहीं गए। फिर चर्चिल जैसा अधिकारी आदमी था, जो युद्ध के मध्य में खड़ा था। अक्सर युद्ध करने वाले और इतिहास लिखने वाले और होते हैं। इस मामले में इतिहास लिखने वाला और बनाने वाला एक ही आदमी था। चर्चिल ने अपने हजारों पृष्ठों में रूजवेल्ट, स्टैलिन और अपने संबंध में बहुत सी बातें लिखी हैं। उसमें रूजवेल्ट और चर्चिल दोनों आस्तिक थे, स्टैलिन नास्तिक था। और तीनों ने ही हिटलर के खिलाफ युद्ध लड़ा। ___हजारों पृष्ठों में खोजोगे, तुम चकित हो जाओगे, सिर्फ स्टैलिन कभी-कभी भगवान का नाम लेता है। न तो रूजवेल्ट नाम लेता है, न चर्चिल नाम लेता है। स्टैलिन बहुत बार कहता है, अगर भगवान ने चाहा, तो युद्ध में विजय होगी। होना उलटा था। रूजवेल्ट नाम लेता, चर्चिल नाम लेता भगवान का-दोनों आस्तिक थे। स्टैलिन नाम लेता है। रूजवेल्ट, चर्चिल उल्लेख ही नहीं करते भगवान का। मनोवैज्ञानिक कारण है। स्टैलिन दबाए हुए बैठा है। जिसको दबाए हुए बैठे हो, वह उभर-उभरकर आएगा। उससे छुटकारा नहीं हुआ है, दबाने के कारण तुम और उससे बंध गए हो। संकट की घड़ी में बाहर आ जाएगा। लेनिन ने तो ईश्वर के खिलाफ बहुत बातें लिखी हैं। उन्नीस सौ सत्रह की क्रांति में जब एक ऐसी घड़ी आ गयी कि इस तरफ या उस तरफ हो जाएगी स्थिति, क्रांति जीतेगी या हारेगी तय न रहा, तो लेनिन ने जो वक्तव्य दिया उसमें उसने तीन बार कहा कि अगर भगवान की कृपा हुई, तो हम क्रांति में विजयी हो जाएंगे। फिर उसने जिंदगीभर कभी नाम न लिया। न उसके पहले लिया था, न उसके बाद में लिया। लेकिन क्रांति की उस दुर्घटना की घड़ी में जैसे होश खो गया, जो दबा पड़ा था वह बाहर आ गया! ___ माओ उन्नीस सौ छत्तीस में बीमार पड़ा। इस समय पृथ्वी पर बड़े से बड़े नास्तिकों में एक है। और जब बीमार पड़ा तो घबड़ा गया। जब मौंत सामने दिखी तो घबड़ा गया। तत्क्षण कहा कि मैं किसी से दीक्षा लेना चाहता हूं; और एक साध्वी को बुलाकर दीक्षा ली। ठीक हो गया, फिर भूल गया साध्वी को भी, दीक्षा को भी। लेकिन मौत की घड़ी में दीक्षा! रूस का सबसे बड़ा नास्तिक जो वहां नास्तिकों के समाज का अध्यक्ष था, जब वह मरा, स्टैलिन उसकी शय्या के पास था। मरते वक्त उसने आंख खोली और उसने कहा कि स्टैलिन, सुनो, वह है! परमात्मा है! सामने खड़ा है, मैं उसे देख रहा हूं। तुम मेरी सारी किताबों में आग लगा देना। याद रखना, यह मेरा आखिरी वचन है कि ईश्वर है। वह मेरे सामने खड़ा है और कहता है कि मैं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा था। जरूरी नहीं है कि ईश्वर खड़ा रहा हो। ईश्वर बड़े-बड़े आस्तिकों के सामने भी 111
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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