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एस धम्मो सनंतनो
ध्यान जगेगा तो ही तुम्हें शाश्वत मूल्य का पता चलेगा। जीवन कहो, अस्तित्व कहो, परमात्मा कहो, प्रज्ञा कहो, समाधि कहो, नाम हैं। नाम ही अलग हैं। सार की बात इतनी है कि तुम्हारा ध्यान का दीया जल जाए। बस फिर किसी नीति का तुम पर बंधन नहीं, क्योंकि तुम कुछ करके भी अनैतिक न हो पाओगे। तुम चाहोगे भी, तो भी अनैतिक न हो पाओगे। तुम्हारे होने में ही नीति समाविष्ट हो जाएगी।
लेकिन जब तक यह न हो, तब तक बुद्धपुरुषों ने जो कहा है, जाग्रत पुरुष जैसे जीए हैं और जैसे चले हैं, तब तक टटोल-टटोलकर उनके रास्ते को मानकर चलना। ___ नीति-जागे हुए पुरुषों का अनुसरण है। धर्म-तुम्हारे भीतर जागरण का आगमन है।
आज इतना ही।
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