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एस धम्मो सनंतनो
कर रहा, हो रहा है।
थोड़ा समझना! बुद्ध कहते हैं, सब हो रहा है, कर कोई भी नहीं रहा है-न तू कर रहा है, न कोई और कर रहा है। चीजें हो रही हैं। नदियां सागर की तरफ बह रही हैं, सागर धूप के सहारे चढ़कर बादल बन रहा है, बादल हिमालय पर बरस रहे हैं, फिर नदी बन रही है—हो रहा है। कोई कुछ कर नहीं रहा है। __ ऐसी अवस्था की प्रतीति होने लगे तो कर्म क्षीण हो जाते हैं। और एक द्युति का जन्म होता है, एक भीतर प्रभा का आविर्भाव होता है। ऐसे व्यक्ति के आसपास तुम एक आलोकमंडल देखोगे। ऐसे व्यक्ति के आसपास ऐसा घना प्रकाश होगा कि तुम चाहो तो छू सको। _ 'वे ही संसार में निर्वाण को पा चुके हैं।'
कोई परलोक नहीं है। यही लोक, जब तुम बदल जाते हो, परलोक हो जाता है। आंख की बदलाहट!
__ काफिर की यह पहचान कि आफाक में गुम है
मोमिन की यह पहचान कि गुम इसमें है आफाक अधर्मी की यह पहचान है कि वह संसार में खोया है। और धर्मी की यह पहचान है कि उसमें संसार खो गया।
__ काफिर की यह पहचान कि आफाक में गुम है संसार में डूबा है, खोया है। संसार ही बचा है, खुद बचा ही नहीं है, इस तरह खो गया है।
मोमिन की यह पहचान कि गुम इसमें है आफाक और धर्मी की यह पहचान है कि स्वयं ही बचा है और सब संसार खो गया है। स्वयं की विराटता में सब लीन हो गया है।
बुद्ध के इन वचनों को अपनी जिंदगी की कसौटी पर कसना। अपनी जिंदगी को बार-बार गौर से देखो, वहीं सब छिपा है। और वहीं कसौटी है कि बुद्ध के वचन सही हैं या नहीं। इन वचनों का कोई और तर्क नहीं है, तुम्हारे जीवन के ही संगति में इन वचनों का तर्क है। ये वचन अपने आप में कुछ प्रमाण नहीं हैं, प्रमाण तो तुम्हारे जीवन के अनुभव और इनके बीच में घटेगा। गौर से देखोगे तो तुम पाओगे
जिंदगी और जिंदगी की यादगार
पर्दा और पर्दे में कुछ परछाइयां तुम जिंदगी को एक स्वप्न से ज्यादा न पाओगे।
पर्दा और पर्दे में कुछ परछाइयां। इन परछाइयों में भरोसा करते रहो तो संसार है। इन परछाइयों को परछाइयों की तरह जान लो, निर्वाण घटित हो जाता है।
असत्य को असत्य की तरह जान लेना, असत्य से मुक्त हो जाना है।
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