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एकला चलो रे
में है, उसके हाथ में तुम्हारी भी लगाम हो गई। जब तुमने किसी चीज का परिग्रह किया, तुम उस चीज के गुलाम हो गए। ____ तो जब तुमने कहा, यह मेरा घर है, तुम इस घर के हो गए। और ध्यान रखना, जब घर छूटेगा तुमसे, घर न रोएगा तुम्हारे लिए, तुम रोओगे घर के लिए। और जब लगाम टूटेगी तो पता चलेगा, तुम गुलाम थे। 'बेघर, एकांत और अकिंचन...।'
अकिंचन होने को जो राजी है। अकिंचन का अर्थ है : नो-बडी, ना-कुछ; जैसे मैं कुछ हं ही नहीं, ऐसा होने को जो राजी है, वही केवल भीड़ से मुक्त हो सकता है। ___ लेकिन ये अनुभव हम सभी को होते हैं। ये अनुभव कुछ अनूठे नहीं, अनूठी तो बात यह है कि अनुभव होते हैं और फिर भी हम गैर-अनुभवी रह जाते हैं। कितनी बार तुम्हारा घर बना और उजड़ा नहीं! कितनी बार तुमने लगाम पकड़ी और नहीं पकड़े गए! कितनी बार तुमने मालिक बनना चाहा और तुम गुलाम बने! और कितनी बार भीड़ का संग-साथ खोजा और तुमने अपने को गंवाया! कितने अनुभव तुम्हें जीवन में होते हैं, लेकिन फिर भी आश्चर्य की बात तो यही है कि तुम कुछ सीखते नहीं।
मोती हो कि शीशा, जाम कि दुर जो टूट गया सो टूट गया कब अश्कों से जुड़ सकता है जो टूट गया सो टूट गया तुम नाहक टुकड़े चुन-चुन कर दामन में छिपाए बैठे हो शीशों का मसीहा कोई नहीं
क्या आस लगाए बैठे हो . जीसस ने मुर्दे को जिला दिया, लेकिन जिन टूटे टुकड़ों को लेकर तुम बैठे हो, उनको वे जोड़ न सकेंगे।
शीशों का मसीहा कोई नहीं
क्या आस लगाए बैठे हो और तुम्हारे दामन में सिवाय टुकड़ों के कुछ भी नहीं है। सब शीशे टूटे हुए हैं। तुमने जीवन में सिवाय टुकड़ों के, व्यर्थ टुकड़ों के, कुछ इकट्ठा किया ही नहीं। लेकिन आशा लगाए बैठे हो कि शायद कोई जोड़ देगा। और रो रहे हो।
कब अश्कों से जुड़ सकता है
जो टूट गया सो टूट गया | जरा गौर से अपनी जिंदगी को एक बार फिर से देखो, एक पुनर्निरीक्षण और