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________________ एस धम्मो सनंतनो धम्मो सनंतनो। कुछ ऐसी बात पा लो, जो सनातन है, जिसे मृत्यु मिटा नहीं पाती। ___और न अधर्म से अपनी उन्नति चाहता है, वही शीलवान, प्रज्ञावान और धार्मिक है।' जब-जब इसे सोचा है दिल थाम लिया मैंने __ इंसान के हाथों से इंसान पे क्या गुजरी आदमी ने आदमी के साथ क्या नहीं किया? और तुम थोड़ा सोचो, किसलिए? पाया क्या? हिटलर ने कितने लोग मारे! चंगेज खां ने कितने लोग समाप्त किए। हम भी सब छोटे-मोटे पैमाने पर वही करते हैं; पाते क्या हैं? ___ पाते कुछ भी नहीं। बच्चों के खेल हैं जैसे! बड़े महल बनाते हैं सपनों के, एक दिन सब पड़ा रह जाता है। मैं तुमसे यह नहीं कह रहा हूं कि तुम बिना समझे इस सब से भाग खड़े होना। भागने की बात नहीं है, तुम इसे समझना। जब तुम एक कदम उठाओ प्रतिस्पर्धा का तो सोचना, क्या होगा? जब तुम्हारे मन में आकांक्षा पकड़े बहुत धन इकट्ठा कर लेने की तो सोचना, इससे क्या होगा? इस पर मनन करना, चिंतन करना, ध्यान करना। जब कोई तुम्हें गाली दे और अपमानित हो उठो और हत्या तुम्हारे मन को पकड़ने लगे, हिंसा के बादल तुम्हें घेर लें तो सोचना, इससे क्या होगा? इससे क्या सार है? जब तुम व्यर्थ की चीजों को इकट्ठा करने में विक्षिप्त होने लगो तो सोचना-- इससे क्या फायदा रंगीन लबादों के तले रूह जलती रहे, घुलती रहे, पजमुर्दा रहे इससे क्या फायदा? कितने ही रंगीन लबादे हों और भीतर आत्मा सड़ती रहे-किसको धोखा दे रहे हो? इस धोखे का सार क्या है? और किसी भी घड़ी श्वास बंद हो सकती है। यह जो एक महान अवसर मिला था, जिसमें कि तुम जाग सकते थे, उसको व्यर्थ के खिलौने इकट्ठे करने में गंवाओगे? रेत की सी दीवार है दुनिया ओछे का सा प्यार है दुनिया रेत की सी दीवार है दुनिया बनाओ, बहुत बनाओ, बड़ा श्रम उठाओ, खून-पसीना करो, सब गंवाओ बनाने में और फिसल-फिसल जाती है। छोटे बच्चे ही जाकर रेत में घर नहीं बनाते, तुम भी वही कर रहे हो। समय की रेत पर बनाए सभी घर गिर जाने वाले हैं। समय की रेत पर बनाया गया कुछ भी ठहरेगा नहीं। जैन शास्त्रों में एक कथा है। एक चक्रवर्ती हुआ; तो जैन शास्त्र कहते हैं कि जब कोई चक्रवर्ती हो जाता है-चक्रवर्ती यानी सारे जगत का सम्राट हो जाता है, सभी का अकेला मालिक हो जाता है, वही सभी होना चाहते हैं, जिसका चक्र सारे जगत में घूमने लगता है तो उसके लिए एक विशेष सुविधा मिलती है। स्वर्ग में 22
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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