SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 286
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चरैवेति चरैवेति कहते हैं, महावीर को जब परम समाधि मिली तब वे उकडूं बैठे थे। अब कोई सोचो, उकडूं भी कोई बैठने की बात है! गौदोहासन कहते हैं जैन उसको; उकडूं नहीं कहते, क्योंकि उकडूं कहना जरा ठीक मालूम नहीं पड़ता। गौदोहासन में बैठे थे। महावीर को कोई गौ नहीं दोहनी, क्या कर रहे थे उकडूं बैठ कर? किस जगह यात्रा खतम हो जाएगी यह भी अनिश्चित बुद्ध वृक्ष के नीचे बैठे थे। तब से कई लोग वृक्षों के नीचे बैठे रहे हैं, इससे थोड़े ही कोई लेना-देना है! सबकी यात्रा अलग-अलग जगह खतम होगी। कुछ कहा नहीं जा सकता, कैसे घट जाएगी बात! तुम्हारे भीतर तो एक ही घटना घटेगी, लेकिन अलग-अलग घटेगी। मीरा नाचती थी, नाचने में घटी। करीब-करीब असंभव है कि कैसे घटेगी। मैं एक सूफी फकीर की जीवनी पढ़ रहा था। वह आलू छील रहा था, तब उसको घटना घटी। अब आलू और आत्मा का कोई संबंध है? आलू और आत्मा से विपरीत चीजें और तुम कोई खोज सकोगे? तब से उसके शिष्य आलू छील रहे हैं। शायद आलू छीलने से कोई संबंध हो! किस जगह यात्रा खतम हो जाएगी यह भी अनिश्चित है अनिश्चित कब कुसुम कब कंटकों के शर मिलेंगे आ पड़े कुछ भी, रुकेगा तू न, ऐसी आन कर ले बस, चलते जाना है। बुद्ध का वचन है : चरैवेति! चरैवेति! चलते जाओ, चलते जाओ, जब तक कि तुम्हारा होना न गिर जाए, बस! आज इतना ही। 273
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy