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________________ चरैवेति चरैवेति मर्जी होगी तो रहस्य का पर्दा अपने से उठेगा। और जब अपने से उठता है तो मजा और! तुम किसी स्त्री का घूंघट उघाड़ दो जबरदस्ती, छुरे का भय दिखाकर, मुंह तो उघड़ जाएगा, लेकिन स्त्री का सौंदर्य न उघड़ेगा; सौंदर्य तो खो ही जाएगा। फिर स्त्री खुद अपना घूंघट उघाड़ती है— उसके लिए जिसके प्रति उसको प्रेम है— तब घूंघट ही नहीं उघड़ता, तब सौंदर्य भी उघड़ता है, लेकिन स्वेच्छा से । परमात्मा को या सत्य को जानने के दो ढंग हैं: एक तो बलात्कार है, जबरदस्ती है । विज्ञान बलात्कार है । धर्म बलात्कार नहीं, प्रेम है। धर्म कहता है, हम प्रतीक्षा करेंगे। 1 अज्ञानी भी जानते हैं, लेकिन उनके जानने का ढंग बिलकुल अलग है । वे प्रतीक्षा करते हैं। वे समझदार होने की चेष्टा में नहीं लगते। वे कहते हैं, हम ठीक हैं, हम मूढ़ ही भले । राह देखेंगे, जिसने हमें बनाया, वही कह जाएगा कुछ जरूरी होगा तो वही बता जाएगा कुछ जरूरी होगा तो । अगर नहीं बताता है तो शायद यही जरूरी है कि न बताए । ज्ञान की छीन - झपट नहीं करते, चोरी-चपाटी नहीं करते। ज्ञान आता है मुक्त दान की भांति, परमात्मा की तरफ से प्रसाद की भांति, तो स्वीकार है; नहीं आता तो यह न आना स्वीकार है । जिस भांति रखे वह, जिस विधि रखे वह, उसी भांति रहना स्वीकार है । ठीक है, नासमझ ही रहो। और यह जो घटना घटी - कि पिछले प्रश्नोत्तर के समय कुछ बेबूझ घटना घटी - यह इसीलिए घटी; अगर ज्ञानी होते तो न घटती । पंडित भी आ जाते हैं भूले-भटके यहां, उन्हें कुछ भी नहीं घटता । मैं उनको देखकर कह सकता हूं। कभी-कभी एक भी पंडित यहां आकर बैठ जाता है तो विघ्न हो जाता है। उसकी मौजूदगी ... यहां एक सरोवर है, वह एक टापू की तरह हो जाता है। उसे मैं देख पाता हूं कि उसके आसपास ऊर्जा का प्रवाह नहीं है, वहां एक मुर्दा चीज रखी है। जिंदा लोगों में एक लाश रखी है। उसके आसपास से प्रवाह बहकर निकल जाता है - टापू है, पथरीला है; आर-पार नहीं जाती बात उसके, किनारे-किनारे से निकल जाती है। अगर तुम नासमझ हो तो सौभाग्यशाली हो । बड़ी मुश्किल से मिलती है नासमझी। नासमझी तो मिली ही हुई है, बड़ी मुश्किल से मिलती है यह समझ कि हम नासमझ बने रहें । स्वभावतः, जो हुआ है, उसे तुम समझा न सकोगे। वह होता ही न, अगर तुम उन लोगों में से होते, जो समझा सकते हैं। इसे फिर दोहरा दूं : हुआ ही इसलिए है कि तुम अबोध हो, छोटे बच्चे की भांति हो होता ही नहीं अगर तुम समझाने-समझने वाले होते । यह बड़ी मुश्किल बात है। उनके जीवन में ही महत्वपूर्ण घटनाएं घटती हैं, जो 267
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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