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________________ एस धम्मो सनंतनो गीता, बाइबिल, धम्मपद इस किताब के मुकाबले कुछ भी नहीं। इनमें कुछ लिखा है, इनमें स्याही के धब्बे पड़े हैं, वह खाली किताब है। उसमें कुछ भी लिखा नहीं है, कोरा आकाश है। वह जरा भी गंदी नहीं हुई है। ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया ___ अज्ञान को अहोभाव से स्वीकार करो; तब तुम्हें अज्ञान अज्ञान जैसा मालूम न पड़ेगा, भोलापन बन जाएगा। तब तुम अज्ञान से बचना न चाहोगे, क्योंकि अज्ञान से जो बचना चाहता है, वही अहंकार है। वह कहता है, मैं जानूंगा, क्योंकि जानकर मैं हो सकूँगा। बिना जाने कैसे रहूं? जानना ही होगा। सत्य को मुट्ठी में लेना है, मोक्ष को हाथ में लेना है, सब पाना है—फिर चाहे धन हो या धर्म। __तुमने कभी खयाल किया! ज्ञान एक तरह का अतिक्रमण है। वैज्ञानिक, जो कि ज्ञान का खोजी है, सदा अतिक्रमण करता रहता है। जहां चूंघट नहीं उठाने थे, वहां . भी बूंघट उठा लेता है। जहां रहस्य रहस्य रहता तो अच्छा था, वहां भी रहस्य को टिकने नहीं देता। साए की भी जरूरत है, अंधेरा भी चाहिए। क्योंकि प्रकाश उत्तेजक है, अंधेरा विश्राम देता है। वैज्ञानिक कहीं अंधेरा नहीं रहने दे रहा है, सब तरफ से अंधेरा मिटाए दे रहा है। जीना मुश्किल हो जाएगा। __जीवन की सारी गहन बातें अंधेरे में घटती हैं। कभी देखा? बीज टूटता है पृथ्वी के गहन अंधकार में; जमीन पर रख दो, बंद का बंद रह जाता है, टूट नहीं सकता। यह इतने राज की बात है, चूंघट इतना सबके सामने उठा कैसे दे? बड़ा शर्मीला है, बड़ा कुलीन है; वेश्या जैसा नहीं है, बाजार में बूंघट खोलकर नहीं खड़ा हो जाता है। पृथ्वी के गहन गर्भ में, अंधेरे में जब तुम उसे दबा देते हो, जब कोई देखने वाला नहीं होता, जब कोई आंख बाधा नहीं देती, तब चुपचाप उस अंधेरे में ट्ट जाता है। चुपचाप! आवाज भी नहीं होती। कलियां भी टूटती हैं तो थोड़ी आवाज होती है, जरा बेशर्म हैं। बीज टूटता है तो किसी को पता ही नहीं चलता, कानों-कान कहीं खबर नहीं होती, चुपचाप टूट जाता है। मां के गहन गर्भ में, अंधकार में जीवन का जन्म होता है; वहां बच्चा निर्मित होता है। अब वैज्ञानिक कोशिश करते हैं, टेस्ट-ट्यूब में...कर लेंगे किसी दिन, लेकिन बड़ी बेशर्मी हो जाएगी; कुछ महत्वपूर्ण खो जाएगा। आदमी ऐसे पैदा भी हो गया टेस्ट-टयूब में तो कुछ महत्वपूर्ण खो जाएगा। वैज्ञानिक सब जगह खोदता फिरता है, सब जगह उघाड़ता फिरता है; हर चीज को नग्न करता फिरता है, अनावरण करता फिरता है। यह एक तरह का प्रकृति के ऊपर बलात्कार है। इसलिए मैं विज्ञान को बलात्कार कहता हूं। व्यभिचार है। धर्म कहता है, हम क्यों बलात्कार करें? जिसने हमें बनाया, उसने सभी को बनाया। जिसने हमें बनाया, उसी ने सब कुछ बनाया। जो हममें है, वही सबमें है। तो कहीं न कहीं तो हम जुड़े हैं। ये बाहर के बूंघट हम क्यों उठाएं? अगर उसकी 266
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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