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अश्रद्धा नहीं, आत्मश्रद्धा
__ रम ही नहीं सकते। वे वहां से गुजर भी जाते हैं तो भी उन्हें दिखाई नहीं पड़ता। कभी-कभी वे वहां पहुंच भी जाते हैं तो भी उन्हें पता नहीं चलता कि कहां पहुंच गए! बुद्ध पुरुषों के पास पहुंचकर भी कुछ लोग खाली हाथ ही लौट जाते हैं।
इस संसार में बहुत कुछ घट रहा है। तुम ऐसा मत मानकर बैठ जाना कि जो तुमने जाना है, बस इति आ गई।
इति तो आती ही नहीं। शास्त्रों की इति आती है। जीवन के शास्त्र की कोई इति नहीं। न कोई आदि है, न कोई अंत है, सदा मध्य है यहां। ___ और जितना खोजोगे, उतना पाते चले जाओगे। सीमा कभी आती ही नहीं। खोजते-खोजते खोजने वाला ही मिट जाता है। सौंदर्य इतना घना होने लगता है कि तुम बचते ही नहीं। भरते-भरते पात्र पिघल जाता है, भरते-भरते पात्र मिट जाता है, लेकिन भरना नहीं मिटता।
कोहसारों का यह गाता हुआ शाबाद सकूत यह हवाओं में लरजता हुआ रंगीन खुमार यह सनोवर के दरख्तों की बुलंदी का वकार बज रहा है मेरे महबूब मेरे दिल का तार ।
कोहसारों का यह गाता हुआ शाबाद सकूत पहाड़ों के सौंदर्य की गीत गाती शांति!
यह हवाओं में लरजता हुआ रंगीन खुमार हवाओं में कंपती, डोलती खुमारी! मस्ती!
यह सनोवर के दरख्तों की बलंदी का वकार ये ऊंचाइयां सनोवर के दरख्तों की, ये आकाश को छूने की आकांक्षाएं! ____ बज रहा है मेरे महबूब मेरे दिल का तार
जैसे-जैसे तुम्हें पहाड़ों का संगीत सुनाई पड़ता है, वृक्षों की अभीप्सा का अनुभव होता है, जैसे-जैसे तुम्हें हवाओं में डोलती मस्ती का थोड़ा सा स्वाद आता है, वैसे-वैसे तुम्हारे भीतर उस प्यारे का तार भी बजने लगता है। उस इकतारे पर किसी की अंगुलियां पड़ने लगती हैं।
इसकी शुरुआत तो है, इसका अंत कोई भी नहीं। 'रमणीय हैं ऐसे वन, जहां सामान्यजन नहीं रमते।'
नहीं कि सामान्यजनों को वहां पहुंचना असंभव है; वे पहुंचकर भी नहीं पहुंच सकते, उनकी आंख ही चूक जाती है। उनके पास देखने का ढंग नहीं, सलीका नहीं। उनके पास देखने की शैली नहीं, उनके पास ध्यान नहीं।
सौंदर्य को जानना हो तो ध्यान चाहिए। सत्य को जानना हो तो ध्यान चाहिए। शिवत्व को जानना हो तो ध्यान चाहिए।
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