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अश्रद्धा नहीं, आत्मश्रद्धा
जो विजयी हुआ। जिसको जैनों ने जिन कहा है, उसको बुद्ध ने अर्हत कहा है। जिनः जो जीत गया। ____ 'गांव हो या वन, नीची भूमि हो या ऊंची, जहां कहीं अर्हत विहार करते हैं, वही भूमि रमणीय है।'
अर्हत का होना रमणीय है। अर्हत के होने में सौंदर्य है। अर्हत के होने में अपूर्व मंगलदायी उत्सव है। जहां अर्हत चलता है, वहीं उसका उत्सव फैल जाता है।
तुम अर्हत को मरुस्थल में नहीं बिठा सकते; उसके मरुस्थल में भी फूल उग आते हैं। तुम अर्हत को अकेला नहीं कर सकते; उसके अकेले में परम नाद का आविर्भाव हो जाता है। तुम अर्हत को मार नहीं सकते; उसकी मृत्यु में भी निर्वाण ही फलित होता है। ____ 'गांव हो या वन, नीची भूमि हो या ऊंची, जहां कहीं अर्हत विहार करते हैं, वही भूमि रमणीय है।'
चाह गई, चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह
जिनको कछु न चाहिए सो ही शहनशाह कबीर ने कहा है।
चाह गई, चिंता मिटी... चिंता चाह की छाया है।
...मनवा बेपरवाह __ जिनको कछु न चाहिए सो ही शहनशाह वे सम्राट हैं; वे चक्रवर्ती सम्राट हैं।
बुद्ध पैदा हुए, ज्योतिषियों ने कहा, या तो यह लड़का सम्राट होगा चक्रवर्ती, या अर्हत तत्व को उपलब्ध बुद्ध पुरुष होगा। पिता बहुत चिंतित हुए। लेकिन आठ ज्योतिषी उन्होंने बुलाए थे सारे साम्राज्य से, सबसे बड़े ज्योतिषी बुलाए थे, उनमें एक कोदन्ना नाम का युवक ज्योतिषी भी था। सात ने तो यह विकल्प दिया कि या तो यह चक्रवर्ती सम्राट होगा और या बुद्धत्व को उपलब्ध हो जाएगा, संन्यासी होगा, परम संन्यासी होगा; लेकिन कोदन्ना ने कहा कि यह चक्रवर्ती सम्राट ही होगा।
पिता बहुत प्रसन्न हुए; उन्होंने कोदन्ना को भेंटों से भर दिया। लेकिन कोदना ने कहा, ठहरो, शायद तुम समझे नहीं। यह बुद्ध पुरुष होगा, यही मेरा मतलब है। क्योंकि सिर्फ.बुद्ध पुरुष ही चक्रवर्ती सम्राट होते हैं, और तो कोई नहीं। इसमें विकल्प है ही नहीं।
तब तो पिता बड़े दुखी हुए। क्योंकि यह कोदन्ना सबसे महत्वपूर्ण ज्योतिषी था: युवा था, लेकिन इसकी आंख बड़ी पैनी थी। और सच में ही इसकी आंख पैनी रही होगी। क्या गजब की बात उसने कही, कि होगा तो यह बुद्ध पुरुष ही, यही मेरा मतलब है, तुम समझे नहीं। झोली मेरी भरने के पहले थोड़ा ठहरो। इन्होंने तो
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