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अश्रद्धा नहीं, आत्मश्रद्धा
जब तक तुम्हें लगता है, तुम कुछ कर सकते हो, तब तक अकृत शुरू नहीं होता। कर ही डालो, जो तुम कर सकते हो; तभी तुम उस जगह आओगे, उस परिधि पर, जहां तुम्हें दिखाई पड़ेगा, अरे! अब आगे मुझसे कुछ भी नहीं हो सकता। __इस भेद को समझना। एक आदमी तो कह सकता है, मुझसे कुछ भी नहीं होता, सिर्फ आत्म-अश्रद्धा के कारण। और एक आदमी कह सकता है, अब मुझसे कुछ भी नहीं होता, क्योंकि वह उस पड़ाव पर आ गया है, जिसके आगे अकृत शुरू होता है। आलस्य से नहीं मिलता निर्वाण, अकृत से मिलता है। ___अकृत का अर्थ है : कृत के बाद, कृत के पार। आलस्य का अर्थ है: कृत के पहले; और अकृत का अर्थ है : कृत के बाद।
कर चुके सब। करने की आखिरी चरम अवस्था आ गई। ध्यान किया, योग किया, जप किया, तप किया, सब किया। उससे बहुत कुछ मिलता है, सिर्फ निर्वाण नहीं मिलता। शांति मिलेगी, आनंद मिलेगा, बड़े सुख की तरंगें फैल जाएंगी, बड़े गहन संगीत बजेंगे, नाच आ जाएगा जिंदगी में, उत्सव होगा, अंधेरी रात कट जाएगी, सुबह होगी-बहुत कुछ मिलेगा, निर्वाण नहीं मिलेगा।
निर्वाण का क्या अर्थ है फिर? निर्वाण का अर्थ ही होता है : जहां तुम मिट जाओ। सुख मिलेगा, तुम रहोगे। शांति मिलेगी, तुम रहोगे। उत्सव होगा, तुम रहोगे। अभी थोड़ी सी कमी बाकी है-तुम हो। उतना ही कांटा अभी गड़ा है। वह कांटा भी जब निकल जाता है, तो निर्वाण।
निर्वाण का अर्थ है : जब तुम बुझ जाते हो। निर्वाण शब्द का अर्थ है, बुझ जाना; जब तुम बिलकुल नहीं बचते; तुम्हारा न होना हो जाता है।
समझो, कृत से तो तुम बढ़ोगे—मैं हूं, और मजबूत होता जाऊंगा। धन कमाओगे तो मैं हूं; योग करोगे तो मैं हूं, क्योंकि मैं योगी हूं, इतना योग किया; तप करोगे तो मैं हूं, यह मैं तो बड़ा होता जाएगा। कृत से तो मैं बड़ा होगा। कृत से तुम आत्मवान बनोगे। . अब तुम्हें बुद्ध की भाषा समझनी बहुत सरल हो सकती है, अगर मेरी बात तुम्हारे खयाल में आ जाए। कृत से तुम आत्मवान बनोगे-मैं हूं। और एक ऐसी घड़ी आएगी, जहां तुम पाओगे, जो किया जा सकता था, किया जा चुका; लेकिन अभी कुछ और एक कदम बाकी है, जो किया नहीं जा सकता। तुम तड़फोगे, भागोगे, दौड़ोगे, लेकिन वह कदम किया नहीं जा सकता। तुम विक्षिप्त होने लगोगे।
तुमने कभी सपने में ऐसा देखा? जागना चाहते हो, जाग नहीं सकते। हाथ हिलाना चाहते हो, हिला नहीं सकते। आंख खोलना चाहते हो, खोल नहीं सकते। कितने घबड़ा नहीं जाते हो! कितने बेचैन नहीं हो जाते हो! आंख भी खुल जाती है तो छाती धड़कती रहती है, पसीना माथे पर बहता रहता है। दुखस्वप्न देखा, तुम कहते हो।
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