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उपशांत इंद्रियां और कुशल सारथी
दिया। मैं उस आश्रम में मेहमान था तो वे दोनों मेरे पास आए। उन्होंने कहा, हम बड़ी मुश्किल में पड़ गए हैं; हम बड़ी कठिनाई में पड़ गए हैं। तोड़ें तो कठिनाई; क्योंकि लगता है, यह तो पाप होगा, भयंकर पाप होगा। न तोड़ें तो कठिनाई; क्योंकि चौबीस घंटे सिवाय कामवासना के और कोई विचार नहीं है। रात हम दो अलग कमरों में सोते हैं। मैं अपनी तरफ से ताला लगा लेता हूं और चाबी खिड़की से दूसरी तरफ फेंक देता हूं, ताकि रात कहीं मैं वासना के ज्वर में ताला खोलकर पहुंच न जाऊं। तो चाबी पत्नी के पास रहती है, वहां ताला नहीं है, वह खोल नहीं सकती। ताला मेरी तरफ रहता है. वहां चाबी नहीं है। ___ मगर यह ब्रह्मचर्य हुआ? असुंदर हो गया व्रत। इस ब्रह्मचर्य से शांति आएगी तुम सोचते हो? पागलपन आएगा। ये दोनों के दोनों पागल हो जाएंगे-ये पागल हो ही गए हैं। अहंकार की अड़चन आ रही है अब। अब वे कहते हैं कि व्रत ले लिया है, सब के सामने व्रत ले लिया, तालियां बजीं। हम खड़े हुए तो बड़े हम प्रसन्न हुए कि कोई महान कार्य कर रहे हैं; अब इसको तोड़ें कैसे? अब अहंकार बाधा बन रहा है। अब रातभर सो नहीं सकते। अब बेचैन हैं। अभी युवा हैं, स्वाभाविक है; गलती उनकी नहीं; गलती होगी तो विनोबा की है। __जो स्वाभाविक है, उसको समझ से जाने दो; जल्दी मत करो। जीवन में जल्दी बड़ी घातक है। अधैर्य क्या है ! परमात्मा पर भरोसा रखो। जैसे वासना आई है, वैसे ही वासना चली भी जाती है। तुम जरा साक्षीभाव रखो। देखो, भरपूर देखो हर चीज को। वासना है तो उसे भी देखो; जरूर कुछ उपयोग होगा उसका; अन्यथा होती ही नहीं। अकारण कुछ भी नहीं है। और देखने के बाद ही तुम्हारी ही अंतर्बोध की दशा बनेगी कि व्यर्थ है; फिर कसम लेने का क्या सवाल उठेगा?
तो मेरे देखें, गलत लोग कसम लेते हैं, ठीक लोग कसम लेते नहीं। ठीक को कसम की जरूरत नहीं है। गलत झंझट में पड़ जाता है। _ 'सुंदर व्रतधारी...।' . लेकिन इसका बौद्ध भिक्षुओं से अर्थ पूछना, तो वे बिलकुल और करते हैं। वे कहते हैं, जिन्होंने व्रत लिया, वे सुंदर हैं—सुंदर व्रतधारी। उसका यह अर्थ नहीं करते, जो मैं कर रहा हूं। वे कहते हैं, जिन्होंने व्रत लिया वे सुंदर हैं, जिन्होंने व्रत नहीं लिया, वे असुंदर हैं। सुंदर हैं व्रतधारी; व्रतहीन असुंदर हैं। __ अब तुम समझ लेना; दोनों में से जो तुम्हें चुनना हो, चुन लेना। मैं यह कहता हूं कि सुंदर व्रतधारी तभी है, जब व्रत जीवन की समझ से आया हो; लिया न गया हो, आया हो, उतरा हो, बोध बना हो; फिर कोई लेने की जरूरत ही नहीं है। तुम उसे जीयोगे, क्योंकि उससे विपरीत जीना असंभव हो जाएगा। जो व्यर्थ हो गया उसे कैसे जीयोगे? लेकिन कसम क्यों लोगे?
तुम रोज सुबह घर का कचरा-कूड़ा साफ करके फेंक देते हो। तुम जाकर कसम
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