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________________ एस धम्मो सनंतनो त्यागी हैं. ये महात्यागी हैं। इनकी पूजा करो, इनकी अर्चना करो, आरती के थाल सजाओ, इनकी रथ-यात्राएं निकालो। ये बड़ा त्याग किए हैं। कौड़ी पकड़ी है, हीरे छोड़े हैं; इनसे बड़ा और क्या त्याग होगा? जिनको तुम त्यागी कहते हो, अगर वे सच में त्यागी हैं, तो वे महाभोगी हैं। उन्होंने कौड़ी छोड़ी, हीरा पाया; इसमें त्याग क्या? व्यर्थ छोड़ा, सार्थक पाया; इसमें त्याग कहां? बुद्ध का सूत्र बड़ा महत्वपूर्ण है, 'वैसे अहंकाररहित...।' बुद्ध पुरुष एक-एक शब्द भी तभी बोलते हैं, जब उसमें बड़ी गहरी सार्थकता हो। साधना अगर तुमने की तो अहंकार पकड़ेगा। अगर समझ जगाई तो समझ के जागने में अहंकार खो जाता है। इसलिए मैं समझ को ही एकमात्र साधना कहता हूं। क्रोध को समझो, क्रोध चला जाएगा। और पीछे, खाली जगह में यह अहंकार न छूट जाएगा कि मैं अक्रोधी हूं। क्रोध को तभी गया हुआ मानना, जब पीछे यह बात न रह जाए कि मैं अक्रोधी हूं। लोभ को तभी गया हुआ मानना, जब पीछे यह भाव न रह जाए कि मैं अलोभी हूं। भोग को तभी गया हुआ मानना, जब भीतर यह भाव न बने कि मैं त्यागी हूं। अगर विपरीत भाव बन जाए, चूक हो गई। इसलिए तो तुम त्यागियों, संन्यासियों के चेहरे पर अकड़ देखते हो। भारी अकड़ है, उन्होंने बड़ा किया है। स्वभावतः, जब कोई करता है तो अकड़ होती है। तुमने क्या किया है? कुछ भी नहीं। उन्होंने बड़ा त्याग किया है, धन-दौलत छोड़ी, घर-द्वार छोड़ा, उन्होंने कुछ किया है; उनकी अकड़ स्वाभाविक है। जैन मुनि किसी को नमस्कार नहीं करते। कैसे करें नमस्कार! ज्यादा से ज्यादा आशीर्वाद दे देते हैं; वह भी उनकी बड़ी कृपा है। नमस्कार नहीं कर सकते किसी को, हाथ नहीं जोड़ सकते किसी को। त्यागी और भोगी को हाथ जोड़े? त्यागी और साधारणजन को हाथ जोड़े? असंभव! यह किस भांति का त्याग हुआ? कहीं चूक हो गई। तो बुद्ध कहते हैं, 'वैसे अहंकाररहित...।' जिसके जीवन में त्याग आता है समझ से; जिसने घोड़े को समझा है; शांत हुआ घोड़ा, शांत किया नहीं; वही कुशल सारथी है। 'वैसे अहंकाररहित, अनास्रव पुरुष की देवता भी स्पृहा करते हैं।' वैसे व्यक्ति से तो देवता को भी, देवताओं को भी ईर्ष्या होगी, प्रतिस्पर्धा होगी। देवताओं को भी! बुद्ध ने कहा है कि जब कोई बुद्धत्व को उपलब्ध होता है तो देवता उसके चरणों में सिर झुकाने आते हैं। क्योंकि देवता कितनी ही ऊंचाई पर हों सुख के, लेकिन सुख भी बंधन है। भोग की कितनी ही सूक्ष्मता हो, इंद्रियों का जाल मौजूद है। तो जब कोई ऐसी दशा को उपलब्ध होता है, जहां इंद्रियां बिलकुल ही शांत हो 184
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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