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________________ ए स धम्मो सनंतनो, एक अग्निपरीक्षा है बुद्ध-प्रणीत 'धम्मपद' की । गौतम बुद्ध ने पच्चीस सौ वर्ष पहले सनातन धर्म के सूत्र कहे थे। बीसवीं सदी के बुद्ध - टू-चेतन ओशो ने उनके नवजात बुद्धत्व की आग से गुजारकर उन सूत्रों का कायाकल्प कर दिया है। हर पच्चीस शताब्दियों के बाद ऐसी जरूरत पैदा होती है कि समय की राख में लिपटे हुए समयातीत अपौरुषेय सूत्रों को कोई हवा दे, ताकि उनकी राख झड़ जाए और अंगारे फिर से धधक उठें। “मैं धम्मपद को आग में ही डाल रहा हूं। जरा और ढंग से। आग जरा सूक्ष्म है जिसमें से धम्मपद धम्मपद होकर निकल ही न सकेगा । और तुम उसे बचा भी न सकोगे, क्योंकि तुम समझोगे व्याख्या हो रही है, मैं जला रहा हूं । " शास्त्र को जलाने की यही तरकीब मैंने सोची। कुछ ऐसी आग से गुजारना है कि शास्त्र जल भी जाए, तुम बचा भी न पाओ, और जो भी शास्त्र में बचाने योग्य था वह बच भी जाए। वह सदा बच जाता है। कोई आग उसे जला नहीं सकती । ' शास्त्र को जीवंत बनाने का एक ही उपाय है : उसे शब्दों से तोड़कर जीवन से जोड़ दो - मनुष्य के जीवन से, जो आज और अभी जी रहा है। इसके लिए ओशो धर्म को मनोविज्ञान की नींव पर खड़ा कर दिया है। उन्होंने मनोविज्ञान के विकसित सोपान में एक नयी सीढ़ी जोड़ दी : बुद्धों का मनोविज्ञान ।
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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