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________________ एस धम्मो सनंतनो तुम आदमी हो और खोजते हुए चले आए हो। _ 'जाने कैसे भटकते हुए हम तो आपके पास आ पहुंचे हैं।' लेकिन यह भाव शुभ है कि तुम्हें लगता है कि शायद भटकते हुए आ पहुंचे हैं। यह भाव शुभ है। नहीं तो अहंकार इसमें भी निर्मित हो सकता है कि हम बड़े खोजते हुए आ गए हैं। यह मैं कह रहा हूं, तुम मत मान लेना। यह मैं कहता हूं, तुम खोजते हुए आए हो। तुम तो यही जानना कि तुम भटकते हुए पहुंच गए हो। नहीं तो यह भी अहंकार मजबूत हो सकता है कि जन्मों-जन्मों के कर्मों का, शुभ कर्मों का फल है। ऐसा कुछ भी नहीं है। यह मेरा कहना है। माना, मुझे पता है कि कुछ शुभ किया होगा तो ही मेरे पास आए हो; लेकिन तुम इसको मत मान लेना। क्योंकि तुमने अगर माना तो किया शभ भी अशभ हो जाएगा। 'और पास रहकर भी आपको कहां जान पाते हैं?' खोज जारी रही तो जान लोगे। और अगर यह भाव मन में बना रहा कि कहां जान पाते हैं, तो जानने की तैयारी हो रही है। चकेंगे तो वही, जो सोचते हैं कि जान लिया। चकेंगे तो वही, जो मानते हैं कि जान लिया। एक ऐसी यात्रा पर तुम्हें ले चल रहा हूं, जिसकी शुरुआत तो है, लेकिन जिसका कोई अंत नहीं। एक अंतहीन अनंत यात्रा है जीवन की; उस अनंत यात्रा का नाम ही परमात्मा है। उस अनंत यात्रा को खोज लेने की विधियां ही धर्म है। एस धम्मो सनंतनो। आज इतना ही। 106
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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