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________________ एस धम्मो सनंतनो ___ तुम जिसको शराब कहते हो, उसको ही शराब नहीं कह रहा हूं; मैं तो पूरे संसार को शराब कह रहा हूं। वह सब नशा है। जरा धन की दौड़ में पड़े आदमी को देखो, उसकी आंखों में तुम एक मस्ती पाओगे। रुपए की खनकार सुनकर उसे ऐसा नशा छा जाता है, जो कि बोतलें भी पी जाओ, खाली कर जाओ तो नहीं छाता। धन की दौड़ में पड़े आदमी को जरा गौर से देखो, कैसा मोहाविष्ट! कैसा मस्त! जैसे मंजिल बस आने के करीब है। परमात्मा से मिलन होने जा रहा है। पदाकांक्षी को देखो, पदलोलुप को देखो, राजनेता को देखो, कैसा मस्त! जमीन पर पैर नहीं पड़ते। शराबी भी थोड़ा सम्हलकर चलते हैं। अहंकार की शराब जो पी रहे हैं, उनके पैर तो आसमान पर पड़ते हैं। सारा संसार, वासना मात्र बेहोशी है। तो अगर कोई कहता हो, यह सारी वासना छोड़ोगे तब तुम सिद्ध बनोगे, तब तुम छोड़ोगे कैसे? यह तो बात ऐसे हुई कि तुम चिकित्सक के पास गए, और उसने कहा, सारी बीमारियां छोड़ोगे तभी मेरी औषधि मैं तुम्हें दूंगा। पर तब औषधि की जरूरत क्या रह जाएगी? नहीं, तुम बीमार हो यह माना, इससे कोई कठिनाई नहीं। तुम स्वस्थ होना चाहते हो, बस इतनी शर्त पूरी हो जाए। तुम स्वस्थ होना चाहते हो। तुम्हारे भीतर कोई बीमारी के पार उठने की चेष्टा में संलग्न हो गया है। तुम्हारे भीतर कोई सीढ़ियां चढ़ने की तैयारी कर रहा है-पार जाना चाहता है इस अस्वास्थ्य से, इस वासना से, तृष्णा से, इस बेहोशी से। माना कि तुम गिर-गिर जाते हो, कीचड़ में फिर-फिर पड़ जाते हो, सब ठीक! इसमें कोई हर्जा नहीं है। लेकिन फिर तुम उठने की कोशिश करते हो। कभी छोटे बच्चे को चलने की कला सीखते देखा? कितनी बार गिरता है? कितनी बार घुटने टूट जाते हैं, लहूलुहान हो जाता है। चमड़ी छिल जाती है। फिर-फिर उठकर खड़ा हो जाता है। एक दिन खड़ा हो जाता है। एक दिन चलना सीख जाता है। अगर हम यह शर्त रखें कि जब तुम सब गिरना छोड़ दोगे, डांवाडोल होना छोड़ दोगे, तभी कुछ हो पाएगा, तब तो हम बच्चे की सारी आशा छीन लें। नहीं, गिरने में भी चलने का ही उपक्रम है। गिर-गिरकर उठने में भी चेष्टा चल रही है, साधना चल रही है। हम बच्चे को कहेंगे, बेफिक्र रहो। गिरने पर ज्यादा ध्यान मत दो। वह भी चलने के मार्ग पर एक पड़ाव है। भटकने पर बहुत ज्यादा परेशान मत हो जाओ। भटकना भी पहुंचने का हिस्सा है। संसार भी परमात्मा के मार्ग पर पड़ता है। गिरो! पड़े ही मत रहो, उठने की चेष्टा जारी रहे। तो एक दिन उठना हो जाएगा। जिसके भीतर उठने की चेष्टा शुरू हो गई, पहला कदम उठ गया। और एक छोटे से कदम से हजारों मील की यात्रा पूरी हो जाती है।
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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