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________________ लुत्फ-ए-मय तुझसे क्या कहूं ! सुबह जब हाथ-मुंह धोकर फिर से सोचोगे, हंसोगे। सब बराबर ! सपने का साधु और सपने का हत्यारा बराबर । लेकिन जागने में गलत करो, तो कुछ बिगड़ता है। जागने में ठीक करो, तो कुछ बनता है। जिससे बनता है, उससे बिगड़ता भी है। जिससे लाभ होता है, उससे हानि भी होती है। जब तक भीतर की नगद, तुम्हारी ही अंतरात्मा में ढली शराब तुम्हें उपलब्ध नहीं है, तब तक पीयो । तब तक भिखारी की तरह मधुशालाओं के द्वारों पर खड़े रहो । लेकिन ध्यान रखना, ऐसे तुम एक विराट अवसर गंवा रहे हो । किसी दिन रोओगे। कहीं ऐसा न हो कि जब तुम्हें सुध आए, तब समय हाथ में न रह जाए। कहीं ऐसा न हो कि जब मौत द्वार पर दस्तक दे दे तब तुम रोओ ! उसके पहले ही जाग आ जाए, तो सौभाग्य! आ सकती है। नहीं तो मेरे पास ही क्यों आते ? खोज चल रही है। डगमगाते हैं पैर, माना। सम्हल जाएंगे। थोड़े अभ्यास की बात है । फिर-फिर लौट जाते हो पुराने ढांचों-ढर्रों में, माना। लंबी आदत है, स्वाभाविक है। लेकिन क्षणभर को भी बाहर निकल आते हो, यह भी क्या कम है ? एक किरण भी तुम्हारे भीतर उतर आती है परलोक की, काफी है। जन्मों-जन्मों के अंधेरे को मिटा लेंगे। अंधेरे की मैं बात नहीं करता । बस, एक किरण काफी है। सूरज तक पहुंच जाएंगे। एक किरण के धागे को पकड़ लिया। बहुत धागे तुम्हें दे रहा हूं। एक नहीं पकड़ते, दूसरा देता हूं। दूसरा नहीं पकड़ते, तीसरा देता हूं। कोई न कोई तो पकड़ में आ ही जाएगा। पकड़ में तुम्हारे नहीं आता, इससे मुझे कुछ परेशानी नहीं है। तुम पकड़ने की चेष्टा करते हो, यही क्या कम है ? छूट जाता है, इस पर मैं ध्यान ही नहीं देता । तुमने पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया था, यही काफी है। कभी न कभी पकड़ में आ ही जाएगा। चेष्टा जारी रहे, साधना जारी रहे, सिद्धत्व भी दूर नहीं है। दूसरा प्रश्न : श रा कल आपने कहा कि कवि और शायर भी कभी-कभी ज्ञान की बातें करते हैं। लेकिन यदि वे शराब न पीते, बेहोशी में न पड़े होते तो सिद्ध हो जाते। तो क्या शराब पीते हुए भी व्यक्ति सिद्ध नहीं हो सकता ? ब पीते ही सभी व्यक्ति सिद्ध होते हैं। ऐसे ही सिद्ध होते हैं। सिद्ध होकर शराब छूट जाती है। 79
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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