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एस धम्मो सनंतनो
मंदिर में स्वागत हो सकता हो, जहां तुम अतिथि हो सकते हो-सम्माननीय, सम्मानित, वहां चोर होकर क्यों जाना?
तो शराबी क्षणभर को भूलता है। जिन शराबियों की मैं बात कर रहा हूं, वे सदा के लिए भूल जाते हैं। मैं तुमसे कुछ छुड़ाना नहीं चाहता। त्याग पर मेरा जोर नहीं है। मैं तुम्हें ठीक-ठीक भोग सिखाना चाहता हूं। विराट तुम में उतर आए। तुम्हारे हाथ में मैं बोतल देना चाहता हूं परमात्मा की।
'आप मुझे देख-देखकर शराब की बातें क्यों करते हैं?' तुम्हें देख-देखकर और बात भी किस बात की करूं? 'मैं सिद्ध हूं; आपको कुछ कहना है?'
अब शराबियों से विरोध करना ठीक नहीं। मान ही लेना उचित है। कौन झंझट ले! जब तुम्हें होश आएगा तो खुद ही समझ आ जाएगी। होश लाने की कोशिश करता रहूंगा। तुम क्या कहते हो, उसकी मैं चिंता नहीं करता।
मेरे पिता के एक मित्र हैं। वे बचपन से मुझे जानते हैं। घोर शराबी हैं। कभी-कभी मुझसे मिलने आ जाते थे। तो मेरे परिवार के लोगों को शक हुआ कि बात क्या होती है? क्योंकि घंटों...। एक दिन वे आए थे, तो मेरी बुआ मकान के पीछे-जहां बैठकर हम दोनों बात कर रहे थे-छिपकर सुनती रही। वह बड़ी हैरान हुई। क्योंकि वे शराबी कह रहे थे कि उन्नीस सौ बत्तीस में वे जेल गए थे। स्वतंत्रता के आंदोलन में। तब तो मैं एक ही साल का था। वे मुझसे कह रहे थे कि हम दोनों जब जेल में तीन साल बंद रहे...याद है कुछ ? मैंने कहा, सब याद है। एक-एक बात याद है। तो जेल की वे बातें करते रहे और यह मानकर कि हम दोनों बंद रहे। मेरी बुआ तो हैरान हुई। ठीक, वह शराबी को तो माफ कर सकती थी। उसको यह समझ में न आया कि मुझे क्या हो गया है?
जाते ही शराबी को उन्होंने मुझे पकड़ा और कहा कि तुम्हें हो क्या गया है? क्या तुम भी पी लिए हो? उन्नीस सौ बत्तीस में तुम्हारी उम्र एक साल की थी। यह आदमी तो बूढ़ा हो गया। यह उन्नीस सौ बत्तीस में जेल गया था। और तुम जेलखाने की दोनों बातें कर रहे थे। अब मैंने कहा, इसका विरोध भी कौन करे? और विरोध करने से सार भी क्या है? यह कोई सुनेगा? अगर मैं इसका विरोध करूं तो मैं भी होश में नहीं।
सो तरु, तू सिद्ध है! अगर विरोध करूं तो मैं होश में नहीं।
लेकिन एक और शराब है। जिस शराब को तुमने अभी शराब समझा, वह असली नहीं है, उधार है। नगद नहीं, धोखा है। आत्मवंचना है। नगद परमात्मा की शराब पीयो।
कर्ज की पाते थे मय लेकिन समझते थे कि हां रंग लाएगी हमारी फाकामस्ती एक दिन
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