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________________ एस धम्मो सनंतनो संसार में होने का ढंग ही बेहोशी है। जब तक तुम परमात्मा की शराब न पी लो, तब तक तुम संसार की शराब पीते ही रहोगे; वह परिपूरक है। और परमात्मा की शराब, बस ऐसी एक शराब है, जो होश देती है; जो बेहोशी नहीं लाती। बाकी सब शराबें बेहोशी लाती हैं, विस्मरण लाती हैं। तुम अपने को भूल जाते हो। और अपने को भूलकर कहीं कोई सत्य को पा सकेगा? अपने को मिटाना है, भुलाना नहीं। मिटाकर सत्य मिलता है। भुलाना तो धोखे की बात है। तुम तो, बने ही रहते हो। बस, तुम्हें याद नहीं रह जाती कि तुम हो। तो शराब इस संसार की चाहे मधुशालाओं में मिलने वाली शराब हो, चाहे राजधानियों में पदों की शराब हो, चाहे बाजारों में धन की शराब हो, चाहे मंदिरों में, मस्जिदों में त्यागियों की शराब हो, जिसमें भी तुम अपने को भूल जाते हो-मिटते. नहीं-याद रखना, भूल जाते हो; बने तो रहते हो। नशा कितनी देर टिकेगा? थोड़ी देर बाद फिर होश उभर आएगा, फिर तुम वापस लौट आओगे। __परमात्मा की भर शराब ऐसी है कि पीकर कोई फिर होश में नहीं आता। होश में नहीं आता, इसका अर्थ, बचता ही नहीं जो वापस लौट आए। बाकी शराबें क्षणभंगुर हैं। परमात्मा की शराब शाश्वत है। एस धम्मो सनंतनो। जिसने उसे पी लिया, फिर वह बचता ही नहीं। मिट ही जाता है। जो मिटाए, ऐसी शराब खोजो। तब तुम चकित होओगे। तब तुम एक विरोधाभास के करीब आ जाओगे। वह विरोधाभास यह है : होश मिटा सकता है; बेहोशी मिटाती नहीं, बचाती है। पीए तो सभी हैं। गलत शराब पीए हैं। ठीक शराब ढालनी है तुम्हारी प्यालियों में। गलत पी-पीकर तो तुम गलत हो गए हो। क्योंकि जो तुम पीते हो, वही हो जाते हो। वही तुम्हारी रगों में और नसों में घूमने लगता है। लेकिन अब तक धर्मों ने भी ठीक पी लेने की बात तो कम कही, गलत की निंदा बहुत की। मेरे मन में शराब की कोई निंदा नहीं है। निंदा से मेरा कोई संबंध नहीं है। शराब की निंदा क्या करनी? क्योंकि कुछ लोग फिर निंदा की ही शराब पीते हैं। फिर वह निंदा ही करने में भूले रहते हैं। फिर उनका कुल नशा इतना ही रह जाता है कि दूसरों को नर्क भेजते रहें और दूसरों को पाप के दंड देते रहें। तब उनकी दुष्टता और उनकी मूढ़ता नए रास्ते खोज लेती है। मेरे मन में कोई निंदा नहीं है। निंदा करने वालों ने ही तो शराब में इतना रस भर दिया। इतना रस शराब में है नहीं, लेकिन निषेध से रस जन्मता है। . आपकी जिद ने मुझे और पिलाई हजरत शेखजी इतनी नसीहत भी बुरी होती है . अगर बहुत ज्यादा लोगों से कहते रहो, मत करो! मत करो! करने का आकर्षण पैदा होता है। अगर लोगों से कहो, यहां झांकना मना है। तो लोग वहीं झांकने 72
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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