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लुत्फ-ए-मय तुझसे क्या कहूं!
पहला प्रश्न:
भगवान, आप मुझे देख-देखकर शराब की बातें क्यों करते हैं? सीधे-सीधे क्यों नहीं कह देते? मैं सिद्ध हं; आपको कुछ कहना है?
तर ने पछा है।
पियक्कड़ों को देखकर शराब की बात उठ आए यह स्वाभाविक है। मेरे पास तुम्हें कहने को कुछ भी नहीं है-तुम्हीं को कहता हूं। एक दर्पण हूं; उससे ज्यादा नहीं। तुम्हारी तस्वीर तुम्हीं को लौटा देता हूं।
तो प्रश्न तो मजाक में ही पूछा है तरु ने, लेकिन मजाक का भी बड़ा सत्य होता है। जरूर बात उसकी पकड़ में आई। उसको देखकर मुझे शराब की बात याद आती
होगी।
__ लेकिन तरु ही अगर पियक्कड़ होती तो कोई अड़चन न थी; सभी पीए हुए हैं। अलग-अलग मधुशालाएं हैं। अलग-अलग ढंग की शराब है। लेकिन सभी पीए हुए हैं। किसी ने धन की शराब पी है, किसी ने पद की शराब पी है, लेकिन सभी बेहोश हैं।
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