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________________ एस धम्मो सनंतनो है, जो है । समझ उपयोगी है। क्योंकि समझ ही तो तुम्हें समझाएगी कि समझ काफी नहीं है। समझ से ही तो तुम समझोगे कि समझ के पार जाना है। समझ ही तो तुम्हें जाएगी कि यह समझ की नींद से उठो । बहुत देखे सपने विचारों के । प्रत्यय और धारणाओं के जाल में बहुत जीए। अब उठें। सुबह हुई, भोर हुई। कौन तुम्हें जगाएगा लोभ से ? कौन तुम्हें जगाएगा क्रोध से ? कौन तुम्हें जगाएगा काम से? अगर कोई सदगुरु के वचन भी सार्थक हो जाते हैं तुम्हें जगाने में, तो इसीलिए कि उस सदगुरु के वचन तुम्हारी समझ के साथ, तुम्हारी सोई हुई समझ के साथ कोई संबंध स्थापित कर लेते हैं। किसी सदगुरु के वचन अगर तुम्हें जगाने में समर्थ हो जाते हैं, तो इसीलिए कि तुम्हारी समझ और सदगुरु के बीच सेतु बन जाता है; अन्यथा कोई उपाय न था । पत्थरों को तो जगाऊं ! सुनते रहेंगे, पड़े रहेंगे। तुममें भी बहुत पत्थर हैं, जो सुनते रहेंगे, पड़े रहेंगे। किसी के भीतर समझ होगी तो करवट लेगी, अंगड़ाई लेगी, जगेगी। देख के कररोफर दौलत का तेरा जी ललचाए धन को देखकर ईर्ष्या जगती है, महत्वाकांक्षा जगती है। देख के कररोफर दौलत का तेरा जी ललचाए संघ के मुस्की जुल्फों की बू नींद सी तुझको आए जैसे बेलंगर की कश्ती लहरों में बुलाए मन की मौज में नीयत यूं है तेरी डांवाडोल तौल, अपने को तौल ! लेकिन तौलने का तो एक ही सूत्र है, भीतर की समझ थोड़ी देखना शुरू करे । तुमने अब तक अपनी समझ का एक ही उपयोग किया है— नासमझी को साथ दिया है । क्रोध करना है तो तुमने समझ का सहारा दिया है क्रोध को । समझ तो तुम्हारे पास है; ठीक उतनी ही, जितनी किसी बुद्ध पुरुष के पास है । उपयोग कहीं गलत हो रहा है, गलत दिशा में हो रहा है। जब तुमने क्रोध किया है तो तुमने हजार तर्क खोजे हैं कि क्रोध जरूरी था। तुमने अपने बच्चे को मारा है, क्रोध किया है, तो तुमने कहा, न मारेंगे तो सुधरेगा कैसे ? जैसे कि यह कोई सिद्ध प्रमाण हो कि मारने से कोई कभी सुधरा है। कौन सुधरा है ? नहीं, लेकिन बहाना है। असली बात थी कि तुम क्रोधित हो गए थे। लेकिन क्रोध को सीधा-सीधा करने की तो तुम्हारी भी हिम्मत नहीं। लोग क्या कहेंगे? तुम अच्छे-अच्छे कारण खोजते हो। तुम कहते हो, बच्चे को सुधारना है। शिक्षक स्कूल में बच्चों को पीटता है, इसलिए नहीं कि बच्चों को सुधारने से उसे कुछ लेना-देना है; क्या प्रयोजन है? लेकिन जब भी बच्चे उसके अधिकार को कहीं भी चोट करते हैं, उसके अहंकार को कहीं भी चोट करते हैं, तब वह ऐसा नहीं 40
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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