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________________ एस धम्मो सनंतनो कोई अड़चन न थी कि वे शून्य की जगह पूर्ण कह देते । कोई अड़चन न थी । तुम्हारे कारण। क्योंकि जैसे ही कोई विधायक शब्द उपयोग किया जाए, तुम तत्क्षण श्रद्धा करने को तैयार हो। तुम चलने को राजी नहीं हो, तुम विश्वास करने को राजी हो । तो बुद्ध ने सब नकारात्मक शब्दों का उपयोग किया। मोक्ष तक का उपयोग नहीं किया। क्योंकि मोक्ष शब्द को सुनते ही तुम्हें ऐसा लगता है कि कोई ऐसा वक्त आएगा जहां हम परिपूर्ण रूप से मुक्त होंगे - मगर होंगे। जहां मैं रहूंगा, मुक्त होकर रहूंगा; बंधन न होंगे, मैं होऊंगा । बुद्ध ने कहा, तुम्हीं बंधन हो । जब बंधन न होंगे तो तुम भी न होओगे। कुछ होगा, जिसका तुम्हें कोई भी पता नहीं है। उसे मैं मत कहो, और आज कोई उपाय नहीं है उसे समझने का । आज तक तो तुमने जो जाना है वे बंधन ही बंधन जाने हैं। अब तक तो तुम बंधनों का जोड़ हो। तुम एक कारागृह हो । तो बुद्ध ने कहा, मैं मुक्त होकर रहेगा, ऐसा नहीं; मैं से मुक्ति हो जाएगी। इसलिए बुद्ध ने मोक्ष शब्द का उपयोग न किया। नया शब्द गढ़ा - निर्वाण | निर्वाण का अर्थ होता है, जैसे तुम दीए को फूंक देते हो, दीया बुझ जाता है, तो कहते हैं दीए का निर्वाण हो गया। निर्वाण का अर्थ है, जैसे दीया बुझ जाता है। फिर तुम खोजकर भी न पा सकोगे कि ज्योति कहां गई ? तुम फिर बता न सकोगे कि पूरब गई ज्योति कि पश्चिम गई। फिर तुम बता न सकोगे कि आकाश में ठहर गई कि पाताल में ठहर गई। फिर तुम कह न सकोगे कहां है ज्योति । विराट में खो गई। नहीं गई। तो बुद्ध ने एक अनूठा शब्द गढ़ा : निर्वाण । निर्वाण के दो अर्थ हैं। एक अर्थ है, दीए का बुझ जाना । जैसे दीया बुझ गया, ऐसे ही तुम बुझ जाओगे। फिर मत पूछो कि कहां रहोगे - मोक्ष में, स्वर्ग में परियों से घिरे, परियों के झुरमुट में, कल्पतरु के नीचे बैठे, जो-जो वासनाएं त्याग दी थीं उनका भोग करते हुए, या नर्क में पापों का कष्ट, दंड पाते हुए? कहां होओगे, बुद्ध ने कहा, मत पूछो यह बात । जैसे दीया बुझ जाता है, निर्वाण में ऐसे ही तुम बुझ जाओगे । निर्वाण का दूसरा अर्थ होता है - वाण का अर्थ होता है, वासना - निर्वाण का अर्थ होता है, वासना का बुझ जाना । जैसे दीया बुझ जाता है, ऐसी वासना बुझ जाएगी। और तुम एक वासना हो । दूसरे धर्म कहते हैं कि तुम अलग हो, वासनाओं ने तुम्हें घेरा । बुद्ध कहते हैं, तुम सभी वासनाओं का जोड़ मात्र हो । यह बड़ा क्रांतिकारी विचार है। दूसरे धर्म कहते हैं, तुम हो और वासनाएं हैं। बुद्ध कहते हैं, वासनाएं हैं, उनके जोड़ का नाम तुम हो । जैसे हम लकड़ियों का एक गट्ठर बांधते हैं। दस लकड़ियां पड़ी थीं, उनको बांधकर एक गट्ठर बना लिया। अब हम इसको बंडल कहते हैं, गट्ठर कहते हैं । लेकिन गट्ठर क्या दस लकड़ियों से कुछ अलग है? दस लकड़ियां इकट्ठी हैं। 38
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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