SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो जिसको अपनी नासमझी से, बालपन से तुमने परमात्मा समझा है, वह कहीं असहाय अवस्था की पुकार ही तो नहीं! जिसको तुमने झुकना समझा है, वह कहीं तुम्हारे कंपते और भयभीत पैरों की कमजोरी ही तो नहीं! जिसको तुमने समर्पण समझा है, वह कहीं तुम्हारी कायरता ही तो नहीं! समर्पण के लिए संकल्प चाहिए। झुकने के लिए खड़े होने वाला बल चाहिए। परमात्मा को पुकारने के लिए बेचारगी नहीं, भीतर की एक असहाय अवस्था नहीं, भीतर का परम संतोष, परम अहोभाव चाहिए। बुद्ध ने परमात्मा नहीं छीना, तुमसे तुम्हारी बेचारगी छीनी। तुमने बेचारगी को ही परमात्मा का नाम दे दिया था। बुद्ध ने तुमसे मंदिर नहीं छीने, तुम्हारे कमजोरी के शरणस्थल छीने। और बुद्ध ने कहा, तुम्हें खुद ही चलना है। बुद्ध ने तुम्हारे पैरों को सदियों-सदियों के बाद फिर से खून दिया। तुम्हें अपने पैरों पर खड़े करने की हिम्मत दी। बुद्ध सदगुरु हैं। और बुद्ध उसी को सदधर्म कहते हैं, जो तुम्हें तुम्हारे भीतर छिपे हुए सत्य से परिचित कराए। झूठी आस्थाओं में नहीं, धारणाओं में नहीं, शास्त्रों में नहीं, व्यर्थ के शब्दजालों में न भटकाए। जो तुम्हें तुमसे ही मिला दे। और जब तुम अपने से मिलोगे तो तुम पाओगे, विराट शून्य है वहां। तुम्हारे ठीक भीतर कोई भी नहीं है। इससे हमें ऐसा लगता है, कोई भी नहीं है तो फिर सार क्या खोजने का? कोई भी नहीं है तो फिर आत्म-ज्ञान? आत्मा को पाने की बातें? जो जानते हैं, उन्होंने आत्मा के स्वरूप को भी शून्य ही कहा है, निर्गुण ही कहा है। बुद्ध ने उसे ठीक-ठीक अभिव्यक्ति दी। उन्होंने आत्मा शब्द में भी खतरा देखा। क्योंकि उससे लगता है कि तुम किसी चीज की तलाश में हो, जो भीतर रखी है। जब तुम कहते हो, मेरे भीतर आत्मा है, तुमने खयाल किया—ऐसे ही, जैसे तुम्हारे घर में कुर्सी रखी है, तुम्हारे भीतर आत्मा रखी है! आत्मा कोई वस्तु है कि गए भीतर और पा गए? ___ गौर से देखो, कौन भीतर जाएगा? अगर आत्मा भीतर रखी है तो फिर यह भीतर जाने वाला कौन है? अगर आत्मा भीतर रखी है तो फिर यह बाहर कौन गया? बुद्ध कहते हैं, न बाहर, न भीतर। वह जो यात्रा है, वह जो बाहर और भीतर आने वाला जाने वाला चैतन्य है, वही है। और वह चैतन्य वस्तु नहीं है, प्रवाह है। वह चैतन्य कोई ठहरा हुआ जल का सरोवर नहीं है; गंगा की सागर की तरफ भागती धारा है। बुद्ध ने आत्मा शब्द का उपयोग नहीं किया, क्योंकि आत्मा से जड़ता का पता चलता है। तुम बड़े हैरान होओगे, क्योंकि तुम तो आत्मा का उपयोग जड़ता के विपरीत करने के आदी हो। तुम तो कहते हो, यह पत्थर जड़ है, इसमें कोई आत्मा नहीं। तुम तो कहते हो, आदमी में आत्मा है। आदमी जड़ नहीं। बुद्ध ने कहा, आत्मा शब्द में ही जड़ता है। आत्मा शब्द का मतलब यह हुआ 36
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy