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बुद्धि, बुद्धिवाद और बुद्ध पानी दिया। इनको तुमने भोजन दिया। इनको तुमने बचाया। तुम्हारी आस्था इनके लिए शक्तिदाई हुई। तुम्हारी आस्था ने इनके ऊपर कंबल लपेटा। ये मुझ गए होते, ये मर गए होते, लेकिन तुमने इन्हें न मरने दिया। और अब मौत करीब आती है। तुम मरने के करीब हो तो भी तुम इनको बचा रहे हो। अब तो जल्दी करो। अब तो इनको उभर आने दो। कोई हर्जा नहीं, कि तुम संदेह करते हुए ही मर जाओ। उतना साहस तो कम से कम साथ होगा। उतना आत्मविश्वास तो कम से कम साथ होगा। उस परमात्मा के सामने प्रार्थना करते हए मर रहे हो, जिस पर तुम्हें भीतर भरोसा ही नहीं। तुम्हारी प्रार्थना झूठी। तुम्हारा प्रेम झूठा। झूठ से कहीं कोई सत्य तक पहुंचा है?
बुद्ध ने संदेह दिया। इसलिए नहीं कि बुद्ध का युग बुद्धिवादी था; नहीं, बुद्ध बुद्धिवादी थे। वे प्रगाढ़ संदेह से ही श्रद्धा तक पहुंचे थे। उन्होंने लंबे और कठिन मार्ग से यात्रा की थी। लेकिन लंबे और कठिन मार्ग से ही यात्रा होती है। कोई शार्ट कट है ही नहीं। तुम जिसको श्रद्धा माने हो, वह शार्ट कट है। तुम बिना गए, बिना कहीं पहुंचे, बिना कुछ हुए श्रद्धा कर लिए हो। तुम्हारी श्रद्धा नपुंसक है।
तुम जानते हो भलीभांति। इसलिए तुम ऐसे लोगों की बातें सुनते फिरते हो, जहां तुम्हारी श्रद्धा में थोड़ा बल आ जाए, थोड़ी ताकत आ जाए। तुम भयभीत हो। तुम्हारे शास्त्रों में लिखा है, नास्तिकों की बातें मत सुनना। नास्तिक कुछ कहे तो कान में उंगलियां डाल लेना।
इन शास्त्रों को छुट्टी दो। ये शास्त्र कमजोरी सिखाते हैं। ये शास्त्र परमात्मा तक कैसे ले जाएंगे? जो आस्था इतनी डरपोक हो कि नास्तिक की बात सुनने से कंपती हो, इससे तो नास्तिक बेहतर। कम से कम उसके शास्त्रों में कहीं तो नहीं लिखा है कि आस्तिक की बात सुनने से डरना। लगता है, उसकी नास्तिकता में उसका भरोसा ज्यादा है; तुम्हारी आस्तिकता से। और जिस पर तुम्हें ही भरोसा नहीं है उससे क्या...क्या सिद्ध हो सकता है?
तो ध्यान रखना, बुद्ध ने संदेह दिया। संदेह प्रक्रिया है श्रद्धा को पाने की। संदेह करते-करते तुम संदेह से मुक्त हो जाते हो। संदेह में चलते-चलते तुम उस जगह आ जाते हो जहां श्रद्धा का सूरज उगता है।
थी वह शायद अपनी ही बेचारगी की एक पुकार
जिसको अपनी सादालौही से खुदा समझा था मैं तुमने जिसे परमात्मा समझा है, कहीं वह तुम्हारी असहाय अवस्था की पुकार ही तो नहीं!
__ थी वह शायद अपनी ही बेचारगी की एक पुकार असहाय अवस्था में भयभीत, पीड़ित, दुखी आदमी परमात्मा को पुकारने लगता है। कहीं वह तुम्हारी बेचारगी की पुकार ही तो नहीं है?
जिसको अपनी सादालौही से खुदा समझा था मैं
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