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________________ एस धम्मो सनंतनो पश्चिम में आज जितना बुद्ध का आदर है, किसी और का नहीं। जीसस का भी नहीं। साधारण आदमियों की बात छोड़ दें, लेकिन पश्चिम में जो भी विचारक हैं, चिंतक हैं, वैज्ञानिक हैं, उनके मन में बुद्ध का आदर रोज बढ़ता जाता है। बाकी लोगों के आदर रोज कम होते जाते हैं। बाकी लोग हारती बाजी लड़ रहे हैं; बुद्ध बिना लड़े जीतते चले जाते हैं। क्योंकि जो बड़ी बात बुद्ध ने कही, वह यह है, कि हम तुमसे मानने को नहीं कहते, खोजने को कहते हैं। यह सूत्र है विज्ञान का। जब खोज लेंगे तो मानेंगे। बिना खोजे कैसे मान लेंगे? किसी दूसरे के बताए कहीं सत्य मिला है ? सत्य इतना सस्ता नहीं है। सत्य कोई संपत्ति नहीं है कि पिता मरे और बेटे के नाम वसीयत कर जाए। न ही सत्य कोई प्रसाद है कि गुरु अनुकंपा करे और दे दे। देने-लेने की बात ही नहीं; खोजना पड़ेगा। कंटकाकीर्ण मार्गों पर चलना पड़ेगा। लहूलुहान, थके-हारे पहुंच जाओ, सौभाग्य! जरूरी नहीं है कि पहुंच ही जाओ। क्योंकि भटकाव बहुत हैं, खाई-खड्ड बहुत हैं, भ्रम-जाल बहुत हैं, माया-मरीचिकाएं बहुत हैं, कहीं भी खो जा सकते हो। और तुम्हारे भीतर भी कमजोरियां बहुत हैं। थक जाओ तो कहीं भी.भरोसा करके रुक सकते हो। किसी भी मंदिर के सामने, किसी भी मस्जिद के सामने पस्त हिम्मत, थके-हारे सिर झुका सकते हो। इसलिए नहीं कि तुम्हें कोई जगह मिल गई, जहां सिर झुकाने का मुकाम आ गया था, बस सिर्फ इसलिए कि अब तुम थक गए; अब और नहीं खोजा जाता। तुम खयाल करना, तुम्हारे झुकने में कहीं पस्त-हिम्मती तो नहीं है! कहीं सिर्फ हार गए, पराजित हो गए, ऐसा तो नहीं है? हारे को. हरि नाम-कहीं ऐसा तो नहीं है? कि हार गए, अब करें क्या, तो हरिनाम जपने लगे। कहीं ऐसा तो नहीं है कि धर्म तुम्हारी मजबूरी है, असहाय अवस्था है? बुद्ध तुम्हें कोई जगह नहीं देते। तुम्हारी कमजोरी के लिए वहां कोई जगह नहीं है। बुद्ध कहते हैं, ज्ञान तो मिलता है आत्म-परिष्कार से; शास्त्र से नहीं। सत्य कोई धारणा नहीं है। सत्य कोई सिद्धांत नहीं है। सत्य तो जीवन का निखार है। सत्य तो ऐसा है, जैसे सोने को कोई आग में डालता है तो निखरता है; जलता है, पिघलता है, तड़फता है, निखरता है। व्यर्थ जल जाता है, सार्थक बचता है। सत्य तो तुममें है, कूड़े-करकट में दबा है। और जब तक तुम आग से न गुजरो, तुम उस सत्य को कैसे खोज पाओगे? __जल्दी मत करना-बुद्ध कहते हैं— भरोसा कर लेने की। भरोसा तभी करना, जब संदेह करने की जगह ही न रह जाए। इस फर्क को खयाल में लो। दूसरे धर्म कहते हैं, भरोसा कर लो संदेह के विपरीत। संदेह को ओझल कर दो आंख से। उपेक्षा कर दो। संदेह है माना, तुम भरोसा कर लो। संदेह को दबा दो भरोसे की राख में। संदेह को भूल जाओ भरोसे की आड़ में। भरोसे की छाया में टिक जाओ। ढांक लो अपना सिर, जैसे शुतुर्मुर्ग 32
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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