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________________ बुद्धि, बुद्धिवाद और बुद्ध लेकिन बुद्ध का धर्म तो तुमसे पहले कदम पर पहुंचने के लिए भी बड़ी लंबी यात्रा की मांग करता है । वह कहता है, संदेह की प्रगाढ़ अग्नि में जलना होगा; क्योंकि तुम जो भरोसा करोगे वह तुम्हीं करोगे न ! तुम जो भरोसा करोगे, वह तुम्हारी बुद्धि ही करेगी न ! तुम्हारी बुद्धि अगर बाधा है तो तुम्हारी बुद्धि से आया भरोसा सीढ़ी कैसे बनेगा ? तुम्हारी बुद्धि में ही अगर रोग है तो उस रोग से जन्मा हुआ विश्वास भी बीमारी ही होगा। इसलिए तो सारी दुनिया पर मंदिर हैं, मस्जिद हैं, गुरुद्वारे हैं- इतना विश्वास फैला हुआ है, लेकिन कहीं खबर मिलती धर्म की ? कहीं सुगंध उठती धर्म की ? कहीं दीए जलते धर्म के ? गहन अंधकार है। कहीं कोई चिराग नहीं। मंदिर अंधेरे पड़े हैं। मंदिर अंधेरे ही नहीं पड़े हैं, अंधेरे के सुरक्षा-स्थल बन गए हैं। मस्जिदों में अंधेरा शरण पा रहा है। आस्था के नाम पर सब तरह के पाप पलते हैं । विश्वास के नीचे सब तरह का झूठ चलता है । धर्म पाखंड है, क्योंकि शुरुआत में ही चूक हो जाती है। पहले कदम पर ही तुम कमजोर पड़ जाते हो। पहले कदम पर ही साहस से खोज नहीं करते। तुम्हारा विश्वास तुम्हारा ही होगा। तुम्हारा विश्वास तुम्हें तुमसे पार न ले जा सकेगा। इसलिए बुद्ध ने कहा, तोड़ो विश्वास, छोड़ो विश्वास । सब धारणाएं गिरा देनी हैं। संदेह की अग्नि में उतरना है। दुस्साहसी चाहिए, खोजी चाहिए, अन्वेषक चाहिए— अभियान पर जाने की जिनकी क्षमता हो, चुनौती स्वीकार करने का जिनके भीतर साहस हो । और बुद्ध कहते हैं, आश्वासन कोई भी नहीं है। क्योंकि कौन तुम्हें आश्वासन दे? यहां कोई भी नहीं है जो तुम्हारा हाथ पकड़े। अकेले ही जाना है। मरते वक्त भी बुद्ध ने कहा, अप्प दीपो भव । अपने दीए बनो। मैं मरा तो रोओ मत। मैं कौन हूं ? ज्यादा से ज्यादा इशारा कर सकता था । चलना तुम्हें था । मैं रहूं तो तुम्हें चलना है, मैं जाऊं तो तुम्हें चलना है। मेरे ऊपर झुको मत। मेरा सहारा मत लो। क्योंकि सब सहारे अंततः तुम्हें लंगड़ा बना देते हैं । सब सहारे अंततः तुम्हें अंधा बना देते हैं । सहारे धीरे-धीरे तुम्हें कमजोर कर जाते हैं । बैसाखियां धीरे-धीरे तुम्हारे पैरों की परिपूर्ति हो जाती हैं । फिर तुम पैरों की फिक्र ही छोड़ देते हो। बुद्ध ने कहा, संदेह करो। बुद्ध का धर्म वैज्ञानिक है। संदेह विज्ञान का प्राथमिक चरण है। इसलिए भविष्य में जैसे-जैसे लोकमानस वैज्ञानिक होता जाएगा, वैसे-वैसे समय बुद्ध के अनुकूल होता जाएगा। जैसे-जैसे वैज्ञानिक चित्त का विस्तार होगा, जैसे-जैसे लोग सोचने और विचारने की गहनता में उतरेंगे और उधार और बासे विश्वास न करेंगे, हर किसी की बात मान लेने को राजी न होंगे, बगावत बढ़ेगी, लोग हिम्मती होंगे, विद्रोही होंगे, वैसे-वैसे बुद्ध की बात लोगों के करीब आने लगेगी। 31
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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