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________________ एस धम्मो सनंतनो हालत करीब-करीब वैसी ही होती है, जैसी सुबह जागकर सपने के बाद होती है। सपने में कितने बेचैन हो लिए, सपने में कितने दुखी हो लिए, सपने में पाया कि पहाड़ छाती पर गिर गया है। आंख खुलती है तो पता चला, अपना ही हाथ है। जैसा तुम्हारा सपना है, ऐसी ही तुम्हारी जिंदगी है। तुम जागे दिन में भी सोए हुए हो। तुम्हारे जागने का कोई भरोसा नहीं है। रात तो तुम सोए हो पक्का, तुम भी मान लेते हो। जिस दिन तुम मान लोगे दिन में भी कि सोए हो, उसी दिन तुम्हारी असली सुबह की शुरुआत हो जाएगी। आंख खोलकर भी तुम सपने ही देख रहे हो। क्योंकि तुम्हारी आंखों में आकांक्षाएं भरी हैं। आकांक्षाओं से भरी आंखें सपना ही देख सकती हैं, सत्य नहीं। आंखें खुली हैं, लेकिन तुम वह नहीं देख रहे हो, जो है। तुम वही देख रहे हो, जो होना चाहिए। ___ बस, इस भेद को थोड़ा समझ लो। जो है, उसे देखना है। जो होना चाहिए; उसे छोड़ना है। वह है ही नहीं होना चाहिए। उस ना-कुछ को छोड़ने में तुम कितनी अड़चन खड़ी कर रहे हो, जो है ही नहीं। मैंने सुना है, एक गांव में अदालत में एक मुकदमा आया था। दो मित्र थे, बड़े पुराने मित्र थे, सिर-फुटव्वल हो गई। जज ने पूछा कि झगड़े का कारण क्या था? तो दोनों थोड़े बेचैन हुए। फिर एक ने कहा कि झगड़े का कारण यह था कि मेरे खेत में इसने भैंसें घुसा दीं। खेत कहां है? जज ने पूछा। उस आदमी ने कंधे बिचकाए। भैंसें कहां हैं? वह दूसरा आदमी बोला कि सुनिए, पहले पूरी बात सुन लीजिए। हम दोनों बैठे थे नदी की रेत पर-पुराने दोस्त हैं-बातचीत चलती थी। मैंने इससे कहा कि मैं भैंसें खरीदने की सोच रहा हूं। यह बोला कि मत खरीदो; न खरीदो तो अच्छा। क्योंकि मैंने ईख का खेत लगाने की सोची है। और तुम भैंसें खरीद लोगे, नाहक किसी दिन झंझट हो जाएगी। घुस गयीं खेत में, क्या करोगे? मैं बर्दाश्त न कर सकूँगा। उस दूसरे आदमी ने कहा तो लगा लिया तुमने खेत! क्योंकि भैंसें तो मुझे खरीदनी हैं। मत लगाओ खेत। अब भैंसों का क्या भरोसा भाई ? भैंसें भैंसें हैं; किसी दिन घुस भी जाएंगी। तब मैं कोई दिन-रात भैंसों की पूंछ पकड़कर तो घूमता न रहूंगा। बात बढ़ गई तो उसने कहा, तुमने भी खरीद ली भैंसें! खेत तो लगेगा ईख का। यह लग गया खेत। उसने अपने डंडे से रेत पर एक जगह लकीर खींच दी और कहा, यह रहा खेत। और दूसरे ने कहा कि फिर मैंने भी अपने डंडे से दो भैंसें उसमें घसा दी, लकीरें खींच दी कि ये घुस गयीं भैंसें। फिर सिर-फुटव्वल हो गई। न कोई खेत है, न कोई भैंस है। __तुमने कभी गौर किया, ऐसी कितनी सिर-फुटव्वल तुम्हारे भीतर नहीं चलती 238
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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