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________________ मंथन कर, मंथन कर हाथ में आता क्या है? आखिर में हाथ खाली के खाली रह जाते हैं । तुम्हारे ही नहीं, सिकंदरों के भी खाली के खाली रह जाते हैं। आखिर में जिंदगीभर की दौड़-धूप के बाद मौत हाथ लगती है । रोज तुम यह होते भी देखते हो। हर घड़ी कोई न कोई मर रहा है। हर घड़ी कोई न कोई फूल मुर्झा रहा है। हर घड़ी कोई न कोई वृक्ष सूखा जा रहा है। चारों तरफ मौत ने तुम्हें घेरा है। अर्थी निकल जाती है तुम्हारे सामने से, तुम दो आंसू भी रो लेते उसकी सहानुभूति में, पर तुम्हें याद नहीं आती कि यह तुम्हारी ही अर्थी की खबर है । यह मौत किसी और की नहीं, यह मौत तुम्हारे ही पते पर आई है। यह डाकिए किसी और के द्वार पर दस्तक नहीं दी, डाकिए ने तुम्हारे ही द्वार पर दस्तक दी है। हर मरती हुई अवस्था में, हर मृत्यु की घटना में, तुम अगर थोड़े जागकर देखो तो तुम पाओगे, तुम्हारे जीवन का सार - निचोड़ क्या है ? यही कि थोड़ी देर - अबेर मर जाओगे। यही कि कदम चलते-चलते, रेंगते - रेंगते मौत की मंजिल पर पहुंच जाओगे । यह भी कोई पहुंचना हुआ? यह कोई बात हुई ? यह जीवन तो बड़ा बेसार हुआ। यह जीवन तो बड़ा बेरंग हुआ । यह जीवन सच्चा नहीं हो सकता। इस जीवन को कहीं तुम चूक ही गए। तुम्हारे पास ठीक-ठीक को देखने की आंख ही शायद नहीं थी । तुमने गलत देखा, वही गलत तुम्हें मृत्यु में ले आया । जिन्होंने ठीक देखा, अमृत में जाग गए। ठीक देखने का अर्थ है : जो मौजूद हुए। मौजूद होने की कला का नाम ध्यान है। और तुम हजार कोशिशें कर रहे हो, कैसे अपने को भुला दो । तुम्हारी सारी चेष्टा यही है, कैसे अपने को भुला दो । जितनी देर तुमने अपने को भुलाया, उतनी देर ही गंवाई। उतनी देर में तो अमृत के स्रोत खोजे जा सकते थे। उतनी देर में तो भूमि की और पर्तें तोड़ी जा सकती थीं। उतनी देर में तो जीवन की ऊर्जा और करीब आ सकती थी। जल स्रोत करीब लाए जा सकते थे । - लेकिन आदमी का सारा जाल भुलाने का है। कभी गलत ढंग से भुलाता है, कभी ठीक ढंग से भुलाता है। लेकिन अब भुलाने में भी क्या गलत और ठीक ? कभी शराब पीकर भुलाता है, कभी संगीत सुनकर भुलाता है। कभी वेश्यालय में भुला लेता है, कभी मंदिर के पूजा-पाठ में । यह जो भूलने की निरंतर प्रक्रिया चल रही है, इसे तोड़ना होगा। यह श्रृंखला तुम्हारी कब्र को तो बनाएगी, तुम्हें मिटा जाएगी। भूलना नहीं है, जागना है। और बड़े आश्चर्य की बात है कि अगर तुम्हें यह खयाल आ जाए तो दुख से ज्यादा जगाने वाली और क्या सुविधा चाहते हो ? दुख जगा सकता है । जिन्होंने दुख को जागने की कुंजी बना ली, उन्होंने दुख को तप कहा। दुख का दंश ही चला गया। दुख की भी सीढ़ी बना ली। दुख पर भी चढ़ गए। दुख पर भी यात्रा कर ली। दुख 235
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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