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________________ मंथन कर, मंथन कर पहला प्रश्न: होश हो तो दूसरा सदा कल्याणकारी है। क्या ऐसा ही आप बुद्ध पुरुष कहते हैं? होश हो तो दूसरा न तो कल्याणकारी है और न अकल्याणकारी; होश हो तो तुम सभी जगह से अपने कल्याण को खींच लेते हो। होश न हो तो तुम सभी जगह से अपने अकल्याण को खींच लेते हो। बोध हो तो कुम जहां होते हो, वहीं स्वर्ग निर्मित होने लगता है-तुम्हारे बोध के कारण। बोध न हो तो तुम जहां होओगे, वहां नर्क की दुर्गंध उठने लगेगी-तुम्हारे ही कारण। ऐसा समझो कि मूर्च्छित-मूछित जीना नर्क का निर्माण है; जागकर जीना स्वर्ग का। जागते हुए किसी ने कभी कोई दुख नहीं पाया। सोते हुए कभी किसी ने कोई सुख नहीं पाया। सोते हुए ज्यादा से ज्यादा सुख की आशा हो सकती है, सुख कभी मिलता नहीं। सुख की आशा में तुम बहुत दुख उठा सकते हो भला, लेकिन सुख कभी मिलता नहीं। जागकर जो मिलता है, उसी का नाम सुख है। दूसरे से कोई संबंध ही नहीं है। अगर तुम ठीक से समझो तो दूसरा है ही नहीं, तुम ही हो। दूसरे के संबंध में जो तुम्हारी धारणा है, वह भी तुम्हारी धारणा है। दूसरे 233
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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