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________________ कल्याण मित्र की खोज __ और बाहर के मूल्य तो ठीक हैं कि कुछ रुपए उधार ले जाएगा वह आदमी, या किसी पद की तुमसे आकांक्षा करेगा, या नौकरी की प्रार्थना करेगा, या अदालत में झूठी गवाही दिलवाएगा, ये तो सब छोटी बातें हैं। बड़ा भयंकर मूल्य तुम चुका रहे हो, वह यह कि कहीं तुम्हें उसकी बात पर भरोसा आ गया, तो तुम सदा के लिए भटक जाओगे। क्योंकि तुमने उस संपदा में भरोसा कर लिया, जो तुम्हारे पास नहीं है। अब तुम खोजोगे क्यों? यह तो ऐसे हुआ, जैसे किसी भिखारी को भरोसा आ गया कि वह सम्राट है। यह तो ऐसे हुआ, जैसे किसी बीमार को भरोसा आ गया कि वह स्वस्थ है। यह तो आंख बंद करना हुआ। यह तो आत्मघात हुआ। यह बहुत महंगा सौदा है। प्रशंसा करने वाले से सावधान रहना। क्योंकि प्रशंसा करने वाले से हित तो कभी हो ही नहीं सकता, अहित ही होगा। थोड़ा समझो, प्रशंसा तभी प्रशंसा जैसी मालूम होती है, जब तुम जैसे नहीं हो, वह तुम्हें वैसा बतलाए। अगर वह उतना ही कहे जितना तुम हो, तो उसमें तो कुछ प्रशंसा होती नहीं; तथ्य का वक्तव्य होता है, उससे तुम प्रसन्न न होओगे। काने को काना कह देने से काना प्रसन्न न होगा; तथ्य का तो स्वीकार है। काने को तो कहो कि कितनी सुंदर आंखें हैं तुम्हारी! अंधे को कहो, नयन सुख! तब प्रशंसा होगी। प्रशंसा सदा ही झूठ है। झूठ हो तभी तुम प्रसन्न होते हो प्रशंसा से। अगर सच हो तो प्रशंसा में प्रशंसा जैसा क्या रहा? अगर तुमने गुलाब के फूल को कहा, कोमल हो; तो कौन सी प्रशंसा हुई? हां, जब तुम कांटे को कहते हो, कोमल हो; तब कांटा प्रसन्न होता है। ___ प्रशंसा से तुम तभी प्रसन्न होते हो, जब कुछ ऐसा कहा गया हो, जो तुम सदा से चाहते थे कि हो, लेकिन है नहीं। झूठ ही सुख देता है प्रशंसा में। और उस प्रशंसा से बढ़ता है तुम्हारे भीतर अहंकार, दर्प, अभिमान। ___अभिमान तुम्हारे जीवन की सारी झूठ का जोड़ है, निचोड़ है। हज़ार-हजार तरह के झूठ इकट्ठे करके अहंकार खड़ा करना पड़ता है। अहंकार सब झूठों का जोड़ है, भवन है, महल है। ईंट-ईंट झूठ इकट्ठा करो, तब कहीं अहंकार का महल बनता है। ___और प्रशंसा ऐसे ही है, जैसे गुब्बारे को हवा फुला देती है। ऐसे ही प्रशंसा तुम्हें फुला देती है। लेकिन. ध्यान रखना, जितना गुब्बारा फूलता है, उतना ही फूटने के करीब पहुंचता है। जितना ज्यादा फूलता है, उतनी मौत करीब आने लगती है। जितना फूलने में प्रसन्न हो रहा है, उतनी ही कब्र के निकट पहुंच रहा है, जीवन से दूर जा रहा है, मौत के करीब आ रहा है। __ अहंकार गुब्बारे की तरह है। जितना फूलता जाता है, उतना ही कमजोर, उतना ही अब टूटा तब टूटा होने लगता है। सभी बुद्ध पुरुषों ने कहा है, प्रशंसा के प्रति कान बंद कर लेना। उससे हित न 209
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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